वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। गंभीर अपराध की जांच में पुलिस द्बारा की गई घोर लापरवाही पर हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है, इसके साथ ही आदेश की प्रति राज्य के मुख्य सचिव एवं डीजीपी को भेजने का निर्देश दिया है.
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस बीडी गुरू की डीबी ने कहा, अभियोजन एजेंसी द्बारा की गई घोर विसंगतियों और चूकों को पूरी तरह से अस्वीकार्य है, ट्रायल कोर्ट को अभियोजन और जाँच एजेंसियों की कार्रवाइयों पर सतर्क निगरानी रखने का आदेश दिया गया, ताकि अभियुक्तों को अभियोजन पक्ष की लापरवाही से अनुचित लाभ उठाने से रोका जा सके, निष्पक्ष और निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित की जा सके, और कानून के शासन और उचित प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखा जा सके.

निचली अदालत ने 21 मई, 2019 को एक डिप्टी तहसीलदार द्वारा कथित तौर पर दर्ज किए गए मृत्यु-पूर्व बयान पर भरोसा किया. हालांकि, हाईकोर्ट ने मृत्यु-पूर्व बयान में कई खामियां बताईं. अदालत ने कहा कि बयान दर्ज करने से पहले कोई चिकित्सा अधिकारी ने यह प्रमाणित नहीं किया कि मृतका बयान देने की मानसिक स्थिति में थी. जिस डॉक्टर ने कथित तौर पर उसकी मानसिक स्थिति की पुष्टि की थी, उसे निचली अदालत में जांचा नहीं गया.
डिप्टी तहसीलदार ने स्वयं क्रॉस-एग्जामिनेशन में स्वीकार किया कि दस्तावेज पर समय और तारीख में विसंगतियां थीं. अदालत ने कहा कि सुनीता की मृत्यु, जो घटना के दो महीने बाद सेप्टिसीमिया से हुई, को सीताराम द्वारा कथित तौर पर दी गई चोटों से सीधे तौर पर जोड़ा नहीं जा सकता. मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने सीताराम की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया और उन्हें संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.
कोर्ट ने निर्देश दिया, कि फैसले की एक प्रति मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़ को भेजी जाए, जो इसे आगे सभी हितधारकों को इस निर्देश के साथ प्रसारित करेंगे कि वे कानून के अनिवार्य प्रावधानों का कड़ाई से पालन करें ताकि अभियुक्त वर्तमान अपराध जैसी चूक का लाभ न उठा सकें. ऐसे अपराध से कानून के अनुसार सख्ती से निपटा जाना चाहिए ताकि राज्य में कानून का शासन बना रहे और दोषी को कानून के शिकंजे से भागने न दिया जाए.
दरअसल, सविता ने पुलिस चौकी मणिपुर अंबिकापुर में मई 2019 में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसकी बेटी सुनीता की वर्ष 2007 में संतराम रवि के साथ विवाह हुआ था. विवाह के बाद से पति संतराम रवि उससे दहेज के नाम पर मारपीट करता था. 02 मई 2019 को उसका दामाद सीताराम एक शादी समारोह में शामिल से लौटकर सुनीता को पीटते हुए मिट्टी का तेल डालकर जान से मारने की नीयत से आग लगा दी.
जब सुनीता किसी तरह आग बुझाने के लिए घर से बाहर भागी, तो उसके बड़े देवर कृष्ण रवि और उसकी पत्नी शांति, जो पड़ोस में रहते हैं, उन्होंने शोर सुना और उसे इलाज के लिए बलरामपुर अस्पताल में भर्ती कराया, जहाँ सुनीता की हालत में सुधार नहीं हुआ और उसे जिला अस्पताल अंबिकापुर में भर्ती कराया गया. मणिपुर पुलिस चौकी सविता की रिपोर्ट पर, अंबिकापुर पुलिस स्टेशन के हेड कांस्टेबल अनिल सिह ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ख और 307 के तहत अपराध पुलिस द्बारा शून्य पर दर्ज किया गया.
जब बिना नंबर वाली अपराध डायरी लाई गई बलरामपुर पुलिस थाने में अपराध दर्ज करने के लिए बलरामपुर पुलिस थाने के उप-निरीक्षक संपत पोटाई ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ख और 307 के अंतर्गत अपराध क्रमांक 112/2019 में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने सुनीता रवि का मृत्युपूर्व बयान दर्ज करने के लिए मजिस्ट्रेट की नियुक्ति के संबंध में कार्यपालक मजिस्ट्रेट अंबिकापुर को लिखित शिकायत भेजी.
उप तहसीलदार किशोर कुमार वर्मा ने सुनीता का मृत्युपूर्व बयान दर्ज किया. इस मामले में अंबिकापुर सत्र न्यायालय ने आरोपी को 498 में दो वर्ष कठोर कारावास एवं 302 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई. इसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील पेश की थी. हाईकोर्ट ने जांच में लापरवाही का लाभ देते हुए भारी मन से अपील को स्वीकार किया है.
अपीलकर्ता की ओर से उपस्थित अधिवक्ता अशोक कुमार स्वर्णकार ने तर्क दिया कि निचली अदालत द्बारा अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराना पूरी तरह से अनुचित है, क्योंकि अभियोजन पक्ष अपराध को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है. अपीलकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, जो उसे प्रश्नाधीन अपराध से जोड़ता हो. उसके पास से कोई भी आपत्तिजनक जब्ती नहीं है. अपीलकर्ता के अनुसार, इस मामले में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है और अभियोजन पक्ष के अनुसार, और जिस व्यक्ति के बारे में कहा जाता है कि उसने अपराध होते देखा था, उसने अभियोजन पक्ष की पूरी कहानी का समर्थन नहीं किया है.