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प्रयागराज. प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ क्षेत्र में सूर्योदय होने के साथ ही महा-आयोजन की व्यापकता और विशालता दिखने लगती है. वहां उपस्थित विशाल मानव समूह की केवल कल्पना कीजिए जहां प्रत्येक व्यक्ति आस्था और भक्ति के सागर में हिलोरें ले रहा है. लेकिन विश्व की इस विस्मयकारी महाघटना में पर्दे के पीछे अथक परिश्रम करने वाले मूक नायक के तौर पर उन्नत अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकियां काम कर रही हैं. एक भव्य संगीत सिम्फनी के अनाम परिचालकों की तरह ये नवाचार सुनिश्चित करते हैं कि सफाई और स्वच्छता, संगीत के हर सुर-लहरी की तरह पूरी तरह लयबद्ध हो.
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महाकुंभ में उच्च तकनीक वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से लेकर प्राकृतिक शुद्धिकरण तालाबों तक, प्रत्येक उपाय पर्यावरण की शुद्धता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. परंपरा और प्रौद्योगिकी का यह सामंजस्यपूर्ण मिश्रण न केवल महाकुंभ के आध्यात्मिक सार को संरक्षित करता है, बल्कि दुनिया भर में भविष्य के बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाले समारोहों के लिए एक मानक भी स्थापित करता है.
एक हलचल भरे शहर की कल्पना करें जो रातोंरात अस्तित्व में आ गया हो, जहां करोड़ों लोग एक भव्य आयोजन के लिए जुटे हों. 45 दिनों के इस विशाल धार्मिक आयोजन में जिसमें अनुमानित तौर पर 40 करोड़ आगंतुक पहुंचे हों, वहां हर दिन उत्पन्न कचरे का प्रबंधन हैरत में डालने वाला है. हालांकि इससे अधिकारी विचलित नहीं हुए और उन्होंने इस कठिन कार्य के लिए भारत के दो प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) की मदद ली है.
महाकुंभ में उत्पन्न अपशिष्ट दिमाग को चकरा देने वाला है. वहां हर दिन लगभग 16 मिलियन लीटर मल विष्ठा, 240 मिलियन लीटर ग्रे-वाटर (शौचालय को छोड़कर अपशिष्ट जल) और करोड़ों तीर्थयात्रियों द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पन्न ठोस अपशिष्ट शामिल हैं. इसके निपटान प्रबंधन के लिए परिष्कृत समाधानों की आवश्यकता पड़ी और तभी उन्नत प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल काम आया.
इनमें से एक हाइब्रिड ग्रेनुलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर (एचजीएसबीआर) है, जिसे इसरो और बार्क के सहयोग से विकसित किया गया है. ये उच्च तकनीक की वॉशिंग मशीन जैसा है जो कपड़े साफ करने की बजाय सीवेज का निपटान करता है. इस तकनीक का उपयोग तीन प्रीफैब्रिकेटेड मल विष्ठा ट्रीटमेंट प्लांट (एफएसटीपी) में किया जा रहा है, जो मानव अपशिष्ट को कुशलतापूर्वक संसाधित कर सुनिश्चित करता है कि वातावरण स्वच्छ और सुरक्षित रहे.
वहां एक अन्य तकनीक जीओ ट्यूब टेक्नोलॉजी अपनाई जा रही है जो कचरे के नियंत्रण और उपचार में सहायक है. यह सुनिश्चित करती है कि पर्यावरण में केवल स्वच्छ पानी ही छोड़ा जाए. यह एक विशाल चाय बैग की तरह है जो बड़ी मात्रा में तरल अपशिष्ट सोखकर उसे साफ करता है.
महाकुंभ में स्वच्छता के लिए इस्तेमाल की जा रही एक अन्य तकनीक बायोरिमेडिएशन है. यह बड़े तालाबों के लाभकारी सूक्ष्मजीवों जैसा है जो प्रदूषकों को विखंडित कर पानी को शुद्ध करता है. इस प्राकृतिक और पर्यावरण अनुकूल विधि को लगभग 75 बड़े तालाबों में एकत्र किए गए ग्रेवाटर में इस्तेमाल की जाएगी ताकि जल को प्रभावी और सुरक्षित रूप से उपचारित किया जाए.
उत्तर प्रदेश सरकार ने 7,000 करोड़ रुपये के कुल महाकुंभ बजट में अपशिष्ट प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता दर्शायी है. वहां अपशिष्ट और जल प्रबंधन के लिए 1,600 करोड़ रुपए और खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) बुनियादी ढांचे के लिए 316 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं. यह वित्तीय और ढांचागत प्रतिबद्धता आयोजन के दौरान स्वच्छता और साफ-सफाई बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करता है.
स्वच्छता उपायों में इन प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल का उद्देश्य महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चिंताओं को कम करना है. वे नदी के जल प्रदूषण को रोकते हैं, अपशिष्ट और सीवेज से संभावित स्वास्थ्य जोखिमों को कम करते हैं, और बड़े पैमाने पर लोगों के एकत्रित होने के पारिस्थितिकी नुकसान में कमी लाते हैं. अपशिष्ट प्रबंधन परिचालन रणनीति में मैनुअल हैंडलिंग को कम से कम करना, उन्नत तकनीकों का उपयोग कर स्रोत-स्तरीय अपशिष्ट पृथक्करण पर जोर देना और व्यापक निपटान तंत्र को लागू करना शामिल है.
इसके अतिरिक्त वहां अन्य आरंभिक उपायों में 1 लाख 45 हजार पोर्टेबल शौचालयों की स्थापना, निरंतर सफाई के लिए बड़ी संख्या में सफाई कर्मियों की तैनाती, पर्याप्त चिकित्सा सुविधा की व्यवस्था और एक व्यापक अपशिष्ट संग्रह और प्रबंधन बुनियादी ढांचे शामिल हैं.
ये उन्नत प्रौद्योगिकियां बड़े पैमाने पर धार्मिक समारोहों के प्रबंधन में व्यापक बदलाव दर्शाते हैं. वे पर्यावरणीय स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन, अल्प स्वास्थ्य जोखिम, न्यूनतम पारिस्थितिक व्यवधान और कुशल संसाधन उपयोग के उपाय प्रदान करते हैं. यह महाकुंभ 2025 में बड़े पैमाने पर धार्मिक समागमों से जुड़ी जटिल प्रचालनतंत्र और पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रबंधन में भारत की तकनीकी कौशल का दस्तावेज है. यह एक दीप्तिमान उदाहरण है कि प्रौद्योगिकी और परंपरा सबके लिए कैसे एक स्वच्छ, स्वस्थ भविष्य निर्मित कर सकते हैं.
लेख – डॉ. जितेंद्र सिंह (केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय, अंतरिक्ष विभाग और परमाणु ऊर्जा विभाग राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार)