भारत देश के हिरदे म बिराजे छत्तीसगढ़ महतारी के कोरा म रिकम रिकम के कला, संस्कृति अउ तीज-तिहार ह तईहा जमाना ले फरत-फुलत हे। पाख, महीना, जुड़, गर्मी अउ चउमासा के हिसाब ले बेरा बेरा म तीज-तिहार मनाये जाथे, जेखर अपन-अपन कथा अउ महात्तम हे।

अइसने तिहार हे ” सवनाही “। सवनाही तिहार के छत्तीसगढ़ म अपन अलग महात्तम हे। सवनाही तिहार सावन महीना शुरू होय के हप्ता-दस दिन पहिली मनाये जाथे। कोनो-कोनो गांव म सावन महिना शुरू होय के तीन-चार दिन पहिली घलो मनाथे।
छत्तीसगढ़ के सबले जुन्ना रहवासी ईहां के आदिवासी हर आय। प्राचीन काल ले अब तक आदिवासी मन प्रकृति के पूजइया आएं, तेखर पाय के छत्तीसगढ़ के हर गांव म ज्यादा ले ज्यादा देबी-देवता मन प्रकृति के रूप हरे, जेन ह गांव चारों दिशा म बिराजे रथे। हर गांव म ग्राम देबी-देवता के मनौती बर एक झन बईगा होथे, जेन ह मन्दिर के पुजेरी कस गांव के देबी-देवता ल मनाथे अउ जगाथे। एक प्रकार ले बईगा ह गांव के एक पउनी होथे।

ठाकुरदेव अउ मेड़ो देव के पूजा

सवनाही के दिन बिहनियां चार बजे बईगा ह गांव के दु-चार परमुख मनखे मन संग गांव के ठाकुरदेव अउ मेड़ो देव म जाके नरियल फोरथे अउ देवता ल मनाथे। अईसे मान्यता हे के बईगा ठाकुरदेव अउ मेड़ो देव अउ गांव के देबी-देवता ल ये बात बार मनाथे के हमर गांव कोनो प्रकार के खत-उपत (परेशानी) अउ बीमारी झन आय। मान्यता अइसनो हे के बईगा ह मेड़ो ल बांधथे। बईगा के मेड़ो बांधे ले कोनो बईरी-दुश्मन के जादू-टोना गांव वाले ल नई लगय। कोनो-कोनो गांव म सवनाही तिहार मनाए के बाद बेरा उगे के पहिली भिन्सरहा या फेर रात के रद्दा नई रेंगय। काबर कोनो-कोनो गांव म बईगा कूकरी ढिले रथे। मान्यता हे बईगा कूकरी ल मंतर भार के छोड़ेथे, जेन बईगा के ढिले कूकरी ल देखहि तेन ह सीरा जही(मृत्यु हो जाएगी)। कोनो-कोनो एखर पीछू वैज्ञानिक कारण मानथे। काबर पानी-बादर के दिन म रात-बिकाल रद्दा रेगें ले कीरा-मकोरा के डर रथे। कोनो-कोनो गांव म बईगा रात के बेरा म मेड़ो ल बांधथे। बईगा के फोरे नरियल के परसाद मेड़ोच म खाय जाथे, परसाद ल धर के घर नई लाय।

बिहिनिया उठ के दाई-माई मन घर के बाहिरी भितिया (बाहरी दीवार) म गाय के गोबर ले निशान अउ चित्र बनाथे। अईसे मान्यता हे कि गोबर के इस चित्र से भूत-प्रेत अउ कोनो प्रकार के बीमारी घर म नई आय।

फसल बर पानी, कोठा बर जड़ी

दिनमान गांव के एक जगह सब जुरियथे। जिहां बईगा सब किसान मन ल बारी-बारी करके मंतर वाले पानी (मंत्रोच्चार किए औषधीययुक्त गंगा जल) देथे। किसान मन वो पानी ल घर ले लेके आय बरतन म झोंकथे अउ अपन-अपन खेत म छिड़कथे। पानी सींचे के बेरा पानी सींचईया ल धोती पहिनना जरूरी हे। अईसे मान्यता हे कि बईगा के दे पानी फसल म सींचे ले फसल म कोनो रोग-राई नई आय। सांझा के बेरा बईगा जंगल ले लाय जड़ी-बूटी ल गांव वाले मन ल देथे, जेन ल गांव वाले मन अपन अपन दुवारी अउ गरुवा कोठा म गडियाथे। अईसे मान्यता हे जड़ी-बूटी गडियाय के बाद घर के कोनो सदस्य ल अउ कोठा के गरुवा गाय ल कोनो बीमारी नई होय। सवनाही के दिन ही कोठा के परवा म बंधाय नरियल फोर दे जाथे अउ नवा कपड़ा म नवा नरियल बांधे जाथे। जेन फेर एक साल बर होथे। ये सब बूता बर बईगा ल गांव के घरो-घर सेर-सीधा(अनाज) अउ रूपिया-पईसा भेंट देके ओकर मान करथें।

लेखक- एन.डी. मानिकपुरी, अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता

हर सोमवार तिहार

वईसे तो बोलचाल म सावन महीना के हर सोमवार ल सवनाही तिहार कहे जाथे। गांव-गांव म सावन सोमवार के तिहार मनाथे। कई गांव म येला भगवान तिहार कहे जाथे। ये दिन गांव के कोनो मनखे खेती-किसानी के बूता करे बर खेत-खार नई जाय। सावन सोमवार के गांव के शिव मंदिर, शीतला मन्दिर अउ प्रमुख जगह श्रीरामचरितमानस, रामधुन, जसगीत के आयोजन देखेबर मिलथे। गांव के पारंपरिक खेल चर्रा, खुडूवा, बिल्लस, कबड्डी, खो-खो सावन सोमवार के ही ज्यादा देखे ल मिलथे।

पुरखा के ये तीज-तिहार ह हमन ल मौसम के अनुरूप पर्यावरण ल संरक्षण देके सीख देथे। ये तिहार हमन ल बताथे के प्रकृति पूजा के संग संग हमन ल फसल अउ गउधन के घलो बरोबर धियान रखना हे। एखर से खाद्य जाल अउ प्राकृतिक सन्तुलन बरोबर बने रही। जंगल के जड़ी बूटी अउ छत्तीसगढ़ के पारम्परिक खेलकूद हमर सेहत बर वरदान हरे। छत्तीसगढ़ के वर्तमान भूपेश सरकार छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार अउ आदिवासी मन के उपचार पारंपरिक तरीका ल विशेष संरक्षक देथे, जेखर अवइया समय म सुखद परिणाम देखे ल मिलही।

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