हिंदू नववर्ष की शुरुआत दो बेहद शुभ योगों के साथ हो रही है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी 22 मार्च 2023 को शुक्ल शुभ योग के साथ हिंदू नववर्ष की शुरुआत दो बेहद शुभ योगों के साथ हो रही है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी 22 मार्च 2023 को शुक्ल और ब्रह्म योग बन रहे हैं. शुक्ल योग 21 मार्च को देर रात 12 बजकर 42 मिनट से 22 मार्च को सुबह 09 बजकर 18 मिनट तक रहेगा. इस योग में किए गए कार्यों में निश्चित तौर पर सफलता मिलती है. वहीं ब्रह्म योग सुबह 9 बजकर 18 मिनट से लकर शाम 06 बजकर 16 मिनट तक रहेगा. ज्योतिषियों की मानें तो इस योग में विवाद, झगड़ा सुलझाना उत्तम फलदायी माना गया है.

हिंदू नववर्ष 22 मार्च को चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होकर 30 मार्च को समाप्त हो रही है. इस बार नव वर्ष विशेष फलदायी है. इस सम्बतसर में प्रजा में आपस में सौहार्द्ध बढ़ेगा, सामान्य जनमानस में एवं शासक वर्ग में विलासिता की प्रवृत्ति बढ़ेगी. चीन की विस्तार वादी नीति के तहत दक्षिणी चीन सागर वैश्विक मुद्दा बनेगा तथा चीन को दबाय नीति भी वैश्विक मुद्दा बनेगी. जन जीवन में वैचारिक संकीर्णता बढ़ेगी. रोगों का प्रकोप बढ़ेगा. आर्थिक क्षेत्र में विफलता शासक वर्ग के संकट को बढ़ाएगी. विश्व में कहीं कादि की राजा – बुध, मंत्री- -शुक्र है.

ब्राह्मण और वैश्य पीड़ित रहेंगे. इस सम्वतसर की ग्रहमंडल की विधानसभा सम्यग्रहों को प्राप्त हुए है और 5 स्थान उपग्रहों को प्राप्त हुए अतः वर्षफल सम होगा. प्रजा में एक ओर सुख शान्ति होगी, वहीं दूसरी मानसिक तनाव बढ़ेगा. सोना व चाँदी दोनों के भाव में वृद्धि का योग है.

राजा बुधदेव हैं- अतः सर्वत्र खुशहाली रहेगी. समाज में स्त्रियों का वर्चस्व बढ़ेगा. औद्योगिक विकास की गति में वृद्धि, विश्व शांति की दिशा में सार्थक प्रयास होंगे. कल्याणकारी कार्यों का लाभ जन सामान्य तक पहुंचेगा. रोगों पर नियन्त्रण के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे. लोगों में विलासिता की प्रवृत्ति अधिक बढ़ेगी आर्थिक विकास की गति में वृद्धि होगी. सौन्दर्य प्रसाधनों के व्यापारी लाभ में रहेंगे. व्यापारिक दृष्टि में सोना व चाँदी के भाव में वृद्धि होगी.

मंत्री शुक्रदेव हैं अतः स्वविवेक न तो शासक प्रधान के पास होगा और न ही मंत्रीगणों के पास सरकार अपने खर्च के लिये कराधाान लेगी. धन का अपव्यय जनता अपनी आँखों से देखने पर विवश होगी. देश में विदेशी मुद्रा का आगमन प्रचुर मात्रा में होगा. आपस में जनता के बीच सौहार्द बना रहेगा विश्व में शांति के प्रयासों में बाधक स्थितियाँ उत्पन्न होगी.

सस्पेश (पूर्व धान्येश) सूर्य हैं- अतः पूर्व धान्य की पैदावार कम होगी. कृषक वर्ग में तंगहाली का दौर रहेगा. वर्षा कृषि के अनु न रहने से परिश्रमी किसानों को उनकी मेहनत का पूरा फल नही मिलेगा। सिंचाई सम्बन्धी कार्यों में शासन की रूचि कम होगी, जिससे कृष्ण में असन्तोष फैलेगा। पहले की पंचवर्षीय योजनाएं पूरी नहीं होगी, राजनेता और अधिकारी वर्ग छदम आचरण करेंगे। धान्येश (पश्चिम धान्येश) शनिदेव हैं अतः अधिकांश प्रदेशों में मौसम अनुकूल होने से फसल का उत्पादन अच्छा रहेगा।

बाढ़ आने से तटवर्ती प्रदेशों में धन-जन की हानि होगी। मेवे आदि का उत्पादन अच्छा होने से भाव सस्ते रहेंगे।

मंगल कार्यों की अधिकता होगी। चूहों और टिड्डियों से खेती पर नकारात्मक असर पड़ेगा। चंद्रमा के कारण अनाज के भाव में कम समय के लिए ही सही, मामूली कमी होगी। शनि की वजह से दूध का उत्पादन मानवीय मूल्यों की तरह गिरेगा और कीमत में उछाल दिखाई देगा। बृहस्पति के कारण संसार के कष्ट देख कर सत्ता पर आसीन लोगों को भगवान की याद आएगी। साथ ही यज्ञ व हवन के माध्यम से संपत्ति व पद का योग-संयोग निर्मित होगा।

संवत का वाहन – गीदड़ और सियार होने से इस संवत में कहीं सूखा तो कहीं अतिवृष्टि से जनधन की हानि होगी। लोगों में बेचैनी का माहौल भी देखा जा सकता है। जनता के बीच आपसी टकराव और संघर्ष का माहौल बनेगा जिससे समाज और राजनीति में तनाव बढ़ेगा।

मां दुर्गा की सवारी नौका का महत्व

जब मां दुर्गा नौका पर सवार होकर आती हैं तो इसे अत्यंत फलदायी माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि नाव अच्छी वर्षा और लहलहाती फसल का संकेत है। इसके साथ इस नवरात्रि में जो साधक माता का स्मरण करता है और पूजा-पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त

22 मार्च को सुबह 06 बजकर 23 मिनट से सुबह 07 बजकर 39 मिनट के मध्य तक घट स्थापना करना उचित रहने वाला है। राहुकाल को अशुभ मुहूर्त माना जाता है। इसलिए इस बात का ख्याल रखें की आप उससे पहले ही घटस्थापना कर लें। चैत्र नवरात्रि के पहले दिन राहुकाल दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से दोपहर 01 बजकर 41 मिनट तक है। राहुकाल के समय में आप मां दुर्गा की पूजा और कलश स्थापना भूलकर भी न करें।

घटस्थापना के लिए आवश्यक सामग्री

1. चौड़े मुँह वाला मिट्टी का एक बर्तन
2. पवित्र स्थान की मिट्टी
3. सप्तधान्य (7 प्रकार के अनाज)
4. कलश
5. जल (संभव हो तो गंगाजल)
6. कलावा/मौली
7. सुपारी
8. आम या अशोक के पत्ते (पल्लव)
9. अक्षत (कच्चा साबुत चावल)
10. छिलके/जटा वाला नारियल
11. लाल कपड़ा
12. पुष्प और पुष्पमाला

मिठाई, दूर्वा, सिंदूर इत्यादि।

घटस्थापना विधि

1. पहले मिट्टी को चौड़े मुँह वाले बर्तन में रखें और उसमें सप्तधान्य बोएँ।

2. अब उसके ऊपर कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग (गर्दन) में कलावा बाँधें।

3. आम या अशोक के पल्लव को कलश के ऊपर रखें।

4. अब नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर और पल्लव के बीच में रखें।

5. नारियल में कलावा भी लपेटा होना चाहिए।

6. घटस्थापना पूर्ण होने के बाद देवी का आह्वान करते हैं।

आप चाहें तो अपनी इच्छानुसार और भी विधिवत पूजा कर सकते हैं।

कलश स्थापना विधि

कलश स्थापना के लिए शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त हो कर पूजा का संकल्प लिया जाता है। संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बोया जाता है और इसी वेदी पर कलश की स्थापना की जाती है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया जाता है और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। इस दौरान अखंड दीप जलाने का भी विधान है। इन दिनों में मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां दुर्गा की पूजा आरंभ की जाती है।

दुर्गा सप्तशती पाठ से भक्तों की कई मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, लेकिन यदि कोई भक्त पूरा पाठ नहीं कर सकते हैं, तो शास्त्रों में उनके लिए कई तरह के विधान है। मां दुर्गा के कई मंत्रों का जाप करके उनसे मनचाहा वरदान प्राप्त कर सकते हैं। सप्तशती में कुछ ऐसे भी स्रोत एवं मंत्र हैं, जिनके विधिवत जाप से इच्छित मनोकामना की पूर्ति होती है।

स्व कल्याण के लिए

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥

बाधा मुक्ति और धन प्राप्ति के लिए सप्तशती का यह मंत्र जपे

सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।

मनुष्यों मत्प्रसादेन भव‍ष्यंति न संशय॥

 आरोग्य एवं सौभाग्य प्राप्ति के चमत्कारिक फल देने वाले मंत्र को स्वयं देवी दुर्गा ने देवताओं को दिया है

 देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

विपत्ति नाश के लिए

शरणागतर्द‍िनार्त परित्राण पारायणे।

सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥

 रक्षा के लिए-

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।

घण्टास्वनेन नरू पाहि चापज्यानिरूस्वनेन च।।

स्वर्ग और मुक्ति के लिए

सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते।

स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।

विघ्ननाशक मंत्र

सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।

एवमेव त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्‌॥