लखनऊ. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एचआईवी संक्रमित व्यक्ति अगर अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम है तो उसे रोजगार या पदोन्नति से वंचित नहीं किया जा सकता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने एक सीआरपीएफ कॉन्स्टेबल की याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसमें एकल-न्यायाधीश पीठ के 24 मई के आदेश को चुनौती दी गई थी.
एकल पीठ ने सीआरपीएफ द्वारा जारी आदेश के खिलाफ उनकी अपील को खारिज कर दिया था, जिसने उन्हें इस आधार पर पदोन्नति देने से इंकार कर दिया था कि उनकी एचआईवी जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी. दो न्यायाधीशों की पीठ ने 6 जुलाई को पारित अपने आदेश में कहा, ‘किसी व्यक्ति की एचआईवी स्थिति रोजगार में पदोन्नति से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है, क्योंकि यह भेदभावपूर्ण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 16 (सरकारी रोजगार में गैर-भेदभाव का अधिकार) और 21 (जीवन का अधिकार) में निर्धारित सिद्धांतों का उल्लंघन होगा.’
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एकल-न्यायाधीश पीठ के आदेश को रद्द करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की पीठ ने केंद्र सरकार के साथ-साथ केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को भी निर्देश दिया कि वह कॉन्स्टेबल की हेड कॉन्स्टेबल के पद पर पदोन्नति पर उसके जूनियरों की पदोन्नति की तारीख से विचार करे. पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि सीआरपीएफ में उन्हें उस हेड कॉन्स्टेबल की तरह सभी लाभ दिए जाएं, जो एचआईवी पॉजिटिव नहीं है.
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