संजीव शर्मा, कोण्डागांव। खेल प्रतिभाएं कैसे तोड़ती है दम इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि स्पोर्टस अर्थारटी ऑफ इंडिया (SAI) के लिए चयनित एक हॉकी की नेशनल खिलाड़ी ने गरीबी की वजह से पढ़ाई के साथ-साथ खेल छोड़ अपनी बूढ़ी मां को सहारा देने के लिए गांव जाकर मजदूरी कर रही है.
धुर नक्सल प्रभावित ग्राम लखापुरी की सेवती पोयाम जब मैदान में हाकी स्टीक लेकर गोल पोस्ट पर खड़ी होती है. अपनी खेल प्रतिभा के दम पर इसका चयन राजनांदगांव स्थित स्पोर्टस अर्थारटी ऑफ इंडिया ट्रेनिंग सेंटर के लिए हो गया है. लेकिन गरीबी की मार झेल रही सेवती चाहकर भी नहीं जा सकती है.
अपने माता-पिता की चार संतानों में से तीसरे नंबर की सेवती की दो बड़ी बहनें शादी के बाद अपने-अपने घर जा चुकी हैं, वहीं चौथे नंबर की बहन रायपुर के दाल मिल में मजदूरी कर रही है. पिता का सिर से साया वर्ष 2020 में उठ गया, जिसके बाद गांव में अकेली बूढ़ी मां की देखभाल के लिए कोई नहीं है, लिहाजा, सेवती गांव में मजदूरी कर अपनी मां की सेवा कर रही है.
सेवती वर्ष 2017 से आईटीबीपी के प्रशिक्षण सूर्या स्मिथ से हाकी के गुर सीख रही थी. 2018 में स्कूल नेशनल, 2019 में सब जूनियर नेशनल, 2019-20 में स्टेट चैंम्पियन नेहरू कप में सिल्वर मैडल दिलाने में अहम भूमिका रही. खेल में बेहतरी के लिए सांई, राजनांदगांव के लिए 9 और 10 दिसंबर 2021 को हुई चयन प्रक्रिया में सफल रही.
लेकिन गरीबी की मार ऐसी कि 90 खिलाड़ियों में से सांई राजनांदगांव के लिए चयनित होने वाली चंद खिलाड़ियों में शामिल होने के बाद भी सांई नहीं जा पाएगी. खेल ही नहीं बल्कि वह पढ़ाई से भी दूर हो गई है, क्योंकि मर्दापाल में 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मां की मदद करने के लिए वह अब गांव चली गई है.
सेवती की स्थिति से नावाकिफ जिला खेल अधिकारी सुदाराम मरकाम कहते हैं कि इस संबंध में हमें जानकारी नहीं है. उसका सांई के लिए कब और कैसे चयन हुआ. वहीं दूसरी ओर आईटीबीपी के कोच सूर्या स्मिथ कहते हैं कि हमने सेवती का खेल पूरी तरह से निखार दिया है. सांई में चयन होना कोई छोटी बात नहीं है. दुख हुआ कि गरीबी इस बच्ची की खेल और शिक्षा दोनों में आडे़ आ रही है.
वहीं सेवती पोयाम कहती हैं कि हॉकी गोलकीपर चयन से बहुत खुश थी, लेकिन हॉकी के गोल पोस्ट में गोल को रोकने से ज्यादा जरूरी बूढी मां का सहारा बनना है. मैं खेलने चली गयी तो उसका क्या होगा, इसलिए हॉस्टल भी छोड़ दिया. गांव में मजदूरी करुंगी. वहीं सांई में खाने-खेलने की पूरी सुविधा मिलने के सवाल पर कहा कि बूढ़ी मां का क्या होगा, उसके पास तो कुछ भी नहीं है. मैं मजदूरी करुंगी, तब तो घर का चूल्हा जलेगा.
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