फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को हर साल होली का पर्व मनाया जाता है. वहीं होली के ठीक एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन करने की परंपरा है और अगले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर रंगों की होली खेली जाती है. Holika Dahan को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इस साल होली का ये पावन पर्व 7 और 8 मार्च को मनाया जाएगा.
मान्यता है कि Holika Dahan की अग्नि में आहुति देने से जीवन की नकारात्मकता समाप्त होती है. साथ ही परिवार में सुख और शांति बनी रहती है. शास्त्रों में मान्यता है कि होलिका दहन के दिन होली पूजन करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं. साथ ही मां लक्ष्मी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है. ऐसे में चलिए जानते हैं होलिका दहन की पूजा की सामग्री, विधि, मंत्र और इसका महत्व … Read More – Ranbir Kapoor ने बेटी Raha Kapoor के नाम पर बनाई Will, इंटरव्यू में किया हैरान करने वाला खुलासा …
होलिका दहन की पूजन सामग्री
एक कटोरी पानी, गाय के गोबर से बनी माला, रोली, अक्षत, अगरबत्ती और धूप, फूल, कच्चा सूती धागा, हल्दी का टुकड़ा, मूंग की साबुत दाल, बताशा, गुलाल पाउडर, नारियल, नया अनाज.
होलिका दहन शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस बार Holika Dahan के लिए शुभ समय 2 घंटे 27 मिनट का है. 7 मार्च 2023 को शाम 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट के बीच का समय होलिका दहन के लिए काफी शुभ है. होलिका दहन के बाद अगले दिन यानी 8 मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी.
होलिका दहन की विधि
Holika Dahan के लिए लकड़ी और उसके आसपास उपलों को रखकर शुभ मुहुर्त में जलाया जाता है. इस बीच सभी लोग होलिका की गुलाल से पूजा करते हैं, गुड़ की गुजिया और होली पर बने तमाम व्यंजनों को अग्नि में समर्पित करते हैं. परिक्रमा लगाते हुए गेहूं की बालियां और हरे चने आदि को अग्नि को समर्पित किया जाता है. इसके बाद एक दूसरे को गुलाल लगाकर, मीठा खिलाकर और गले मिलकर होली के पर्व की बधाई दी जाती है. Read More – देश के आकर्षक और लोकप्रिय शहरों में से एक है अमृतसर, यहां घूमने लायक है बहुत सी जगह …
होलिका दहन का महत्व
होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि इससे जीवन की नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में खुशहाली आती है. Holika Dahan को लेकर एक कथा भी प्रचलित है. कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था जिसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का भक्त था, इस कारण हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को मरवाने का प्रयास करता रहता था, लेकिन उसके सारे प्रयास विफल हो जाते थे.
एक बार उसने अपने बेटे को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को उसे गोद में लेकर आग में बैठने को कहा. होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था. लेकिन होलिका जैसे ही प्रहलाद को लेकर आग में बैठी, वो जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया. जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि थी. तब से हर साल इस दिन होली का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है.
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