Holi 2025: देशभर में होली के उत्सव का माहौल है, लेकिन राजस्थान के उदयपुर जिले के मेनार गांव में होली का जश्न कुछ अलग अंदाज में मनाया जाता है। यहाँ होली के अगले दिन जमरा बीज पर गोला-बारूद और तोपों के शोर में यह उत्सव मनाया जाता है, जो शौर्य और हार न मानने की कहानी कहता है।

500 सालों से चली आ रही है ये परंपरा
करीब 500 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा की जड़ें मेनारिया ब्राह्मणों के संघर्ष में हैं। कहा जाता है कि मेवाड़ में महाराणा अमर सिंह के शासनकाल में मेनार गांव के पास मुगल सेनाओं की चौकी लगी थी। जब ग्रामीणों को मुगल आक्रमण की भनक लगी, तो उन्होंने रणनीति बनाकर मुगलों का सामना किया। उस वीरता और जीत की खुशी में ही गांववालों ने यह अनूठा उत्सव शुरू किया।
होलिका का अनोखा रंगमंच
देर शाम को पूर्व रजवाड़ों के सैनिकों की पोशाक में सजे ग्रामीण अपने-अपने घरों से निकलते हैं। तलवारें लहराते, बंदूकों से ‘गोलियां’ दागते हुए, वे ओंकारेश्वर चौक पर एकत्र होते हैं, जहाँ तोपों की आवाज़ और आतिशबाजी का शानदार माहौल होता है। अबीर-गुलाल से सजाए रणबांकुरों का स्वागत किया जाता है, जबकि देर रात तक बम-गोले छोड़े जाते हैं।
निडर महिलाओं का जोश
इस समारोह में महिलाओं का भी विशेष योगदान होता है। सिर पर कलश रखकर, वीर रस के गीत गाती हुई महिलाएं निर्भीक होकर आगे बढ़ती हैं, जो इस परंपरा में शौर्य और साहस का प्रतीक बन जाती हैं।
मेहनार गांव की यह अनूठी होली परंपरा न केवल इतिहास की गाथा कहती है, बल्कि वर्तमान में भी लोगों में उत्साह और राष्ट्रीयता की भावना को जगाती है। यह त्योहार, जो फिल्म ‘गोलियों की रासलीला’ की याद दिला देता है, आज भी मेनारिया समाज की पहचान बना हुआ है।
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