Holi 2025: बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थस्थलों में होली नहीं खेली जाती. इसके पीछे एक गहरा आध्यात्मिक और ज्योतिषीय कारण है. यह केवल परंपरा मात्र नहीं है, बल्कि इन स्थानों की पवित्रता, साधना और आध्यात्मिक प्रभावों से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण नियम है. वहां वैराग्य और तपस्या का माहौल होने के कारण रंगों और उत्सवों की बजाय भक्ति, ध्यान और शांति को प्राथमिकता दी जाती है.

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इसके कुछ प्रमुख कारण (Holi 2025)

  • ध्यान और तपस्या का केंद्र: बद्रीनाथ और केदारनाथ हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक हैं. यहां भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा होती है. इन स्थानों को ध्यान और तपस्या के केंद्र के रूप में देखा जाता है, इसलिए यहां उत्सवों में रंग खेलने की परंपरा नहीं है.
  • मौसम की कठिन परिस्थितियां: बद्रीनाथ और केदारनाथ हिमालय में स्थित हैं, जहां मार्च के महीने में अत्यधिक ठंड और बर्फबारी होती है. इन परिस्थितियों में रंगों से होली खेलना संभव नहीं होता.
  • मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं: बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम सर्दियों में पूरी तरह बंद रहते हैं, और इनके कपाट अप्रैल या मई में खुलते हैं. जब होली का समय आता है, तब मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खुले ही नहीं होते.

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धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है

इन धामों में विशेष धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है. यहां ध्यान, भजन-कीर्तन और तपस्या को अधिक महत्व दिया जाता है, इसलिए होली जैसे रंगीन उत्सवों को नहीं मनाया जाता. हालांकि, उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों में होली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है, खासकर कुमाऊंनी होली (बैठकी और खड़ी होली) विशेष रूप से प्रसिद्ध है.

धार्मिक परंपरा और नियम (Holi 2025)

हिंदू धर्म में कुछ स्थानों को सात्त्विक तीर्थ स्थल माना गया है, जहां तामसिक और राजसिक गतिविधियाँ निषेध होती हैं. होली एक राजसिक पर्व है, जिसमें उत्साह, उमंग और मस्ती होती है, जो इन तीर्थस्थलों के आध्यात्मिक नियमों से मेल नहीं खाती.

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