नई दिल्ली। यह बिल लोगों को न्याय दिलाने के लिए लाया गया है. वंचित लोगों को आगे बढ़ाने के लिए बिल लाया गया है. लेकिन हम यह भी ध्यान रख रहे हैं कि हम अधिकार को सम्मान के साथ दे रहे हैं. यह बात गृह मंत्री अमित शाह लोकसभा में जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश करते हुए कही.

केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की चल रही तैयारियों के बीच केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया है. विधेयक पर चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जो बिल मैं यहां लाया हूं वह उन लोगों को न्याय दिलाने और उनका अधिकार दिलाने से संबंधित है जिनके खिलाफ अन्याय हुआ, जिनका अपमान हुआ और जिनकी अनदेखी की गई.

उन्होंने कहा कि भारत के संविधान की मूल भावना है कि किसी भी समाज में जो वंचित हैं, उन्हें आगे लाना चाहिए. लेकिन उन्हें इस तरह से आगे लाना है, जिससे उनका सम्मान कम न हो. अधिकार देना और सम्मानपूर्वक अधिकार देना, दोनों में बहुत बड़ा अंतर है, इसलिए कमजोर और वंचित वर्ग की बजाय अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए इसका नाम बदलना महत्वपूर्ण है.

शाह ने कहा कि 1980 के बाद जब राज्य में आतंकवाद का प्रभाव बढ़ा, तो किसी ने इसको रोकने का गंभीर प्रयास नहीं किया. जिनकी जिम्मेदारी इसे रोकने थी, वह लंदन में बैठे छुट्टी मना रहे थे. अगर उस समय काम हो गया होता, तो कश्मीरी पंडित विस्थापित ही न होते. 46 हजार से ज्यादा परिवार विस्थापित हो गए. उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर रहने लगे. यह बिल उनको अधिकार देने का है.

उन्होंने कहा कि इस बिल के जरिए उन्हें उचित प्रतिनधित्व मिलेगा. 2019 में हमारी सरकार ने इनकी आवाज सुनी, जो पिछली सरकारें नहीं सुन रही थी. इससे पहले न्यायिक डिलिमिटेशन बिल कमीशन लाया गया था. हमने डिलिमिटेशन की प्रक्रिया को पवित्र किया. कश्मीरी विस्थापितों के लिए दो सीटें आरक्षित की गई है. एक सीटे पीओके से विस्थापितों के लिए है. इस तरह से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नौ सीटें एसटी के लिए, 20 सीटें एससी के लिए आरक्षित की गईं हैं. 24 सीटें पीओके लिए है. नोमिनेटेड सदस्यों की संख्या की पांच होगी.