रणधीर परमा, छतरपुर। बुंदेली कवि डॅा. अवधकिशोर जडिया को जैसे ही पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा हुई, वैसे ही उनके शहर हरपालपुर सहित पूरे बुंदेलखंड को उन पर नाज हो गया। पुरुस्कार देने की घोषणा के साथ ही डॉ. जडिया के घर पर भदाई देने लोगों ता तांता लग गया। लोग उनका सम्मान करने के लिए पहुंचने लगे। डॉ. जडिया बुंदेली भाषा के तो कवि हैं ही, लेकिन उनकी ब्रज व हिंदी भाषा में भी कई काव्य रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।

बता दें कि 50 साल से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय अवध किशोर जिले के छोटे से कस्बे हरपालपुर के रहने वाले है। उन्हें बचपन से ही साहित्य से लगाव रहा है। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन को साहित्य के क्षेत्र में समर्पित कर रखा। साहित्यकार ने पद्मश्री के लिए सरकार का धन्यवाद देते हुए इस सम्मान को मां शारदा की कृपा बताया है। उनकी प्रसिद्ध कविताओं में बुंदेलखंड संस्कृति, कोरा अधर, गोपी गीता, काले कन्हान के कान लगे हैं, ये चार रचनाएं हैं। इसके साथ ही मध्यप्रदेश के शिक्षा के पाठ्यक्रम में चार कविताएं शामिल हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दी थी बधाई
देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सन 1973 के लगभग अपनी भांजी की शादी में शामिल होने छतरपुर जिले के हरपालपुर आये थे। शादी समारोह में डॉ. जडिय़ा द्वारा कविता पाठ किया गया। उनकी बुंदेली भाषा की कविता सुनकर स्टेशन के गेस्ट हाउस में बुलाकर उनकी कविताओं के लिये बधाई एवं शुभकामनाएं दी थी। उनके घर में पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के साथ फोटो लगा है। राज माता विजया राजे सिंधिया ने भी कविता सुनकर उनकी तारीफ की थी।

उत्तरप्रदेश सरकार से लोकभूषण सम्मान 2012 में मिला
उनका जन्म हरपालपुर में 17 अगस्त 1948 को आलीपुरा स्टेट के राजवैद्य ब्रजलाल के घर हुआ। इनके पिताजी ज्योतिष के ज्ञाता, वैद्य तथा साहित्य मर्मज्ञ रहे। उन्हीं से साहित्यिक संस्कार डॉ. जडिय़ा को प्राप्त हुए। इनकी प्रारंभिक शिक्षा हरपालपुर में और चिकित्सीय स्नातक डिग्री बीएएमएस ग्वालियर विश्वविद्यालय से स्वर्णपदक के साथ 1970 में प्राप्त की थी। डॉ. जडिया को साहित्य के क्षेत्र में कई पुरस्कार व सम्मान मिले हैं। उन्हें उत्तरप्रदेश सरकार से लोकभूषण सम्मान 2012 में मिला। इसके साथ ही वे विभिन्न साहित्य संस्थाओं से जुड़े हुए हैं।

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