जून आते ही सोशल मीडिया पर ‘दो जून की रोटी’ वाले जोक्स और कहावतें तैरने लगती हैं. इसमें से कुछ लोग बताते हैं कि आखिर में दो जून की रोटी कमाना कितना मुश्किल है तो कुछ कहते हैं कि वे बहुत भाग्यशाली हैं कि वे दो जून की रोटी खा पा रहे हैं. दरअसल, दो जून की रोटी से लोगों का मतलब दो वक्त के खाने से होता है.
इंसान की जो सबसे आम जरूरत है, वह भोजन ही है. खाने के लिए ही इंसान क्या नहीं करता है. नौकरी, बिजनेस करने वाले से लेकर गरीब तक, हर शख्स भोजन के लिए ही काम करता है. हिंदी बेल्ट के इलाकों में इस लोकोक्ति का खूब इस्तेमाल किया जाता है.
मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद जैसे बड़े साहित्यकारों के किस्से, कहानी और कविताओं में भी ‘दो जून की रोटी’ कहावत का जिक्र देखने को मिलता है. वहीं, दो जून का अर्थ निकालेंगे तो अंग्रेजी कैलेंडर के छठे महीने को जून कहा जाता है, जिसके अनुसार आज जून महीने की 2 तारीख है. वहीं, इस कहावत के इतिहास की पूरी तरह से तो जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ यही निकाला जाता है.
दरअसल, अवधी भाषा में ‘जून’ का मतलब ‘वक्त’ यानी समय से होता है, जिसे वे दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर कहते थे. इस कहावत को इस्तेमाल करने का मतलब यह होता है कि इस महंगाई और गरीबी के दौर में दो टाइम का भोजन भी हर किसी को नसीब नहीं होता.
वहीं, जून का महीना सबसे गर्म होता है. जून में भयकंर गर्मी पड़ती है और इस महीने में अक्सर सूखा पड़ता है, जिसके कारण जानवरों के लिए भी चारे-पानी की कमी हो जाती है. हमारा भारत कृषि प्रधान देश है, इस समय किसान बारिश के इंतजार और नई फसल की तैयारी के लिए तपते खेतों में काम करता है. इस चिलचिलाती धूप में खेतों में उसे ज्यादा मेहनत करना पड़ता है और तब कहीं जाकर उसे रोटी नसीब होती है.