यमुना नदी और दिल्ली के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs), कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (CETPs) और नालों से संबंधित डेटा पिछले तीन महीनों से अपडेट नहीं किया गया है। नियम के अनुसार यह जानकारी हर महीने कम से कम एक बार सार्वजनिक की जानी चाहिए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) को निर्देश दिया था कि वह हर महीने रिपोर्ट अपलोड करे। हालांकि, DPCC ने आखिरी बार सितंबर में ही इन प्लांटों और नालों के पानी की गुणवत्ता का डेटा साझा किया था। यमुना और मुख्य नालों के बारे में DPCC की वेबसाइट पर सबसे ताजा रिपोर्ट अक्टूबर की उपलब्ध है।

DPCC और दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या पानी के नमूने लेना बंद कर दिया गया है या डेटा क्यों प्रकाशित नहीं किया जा रहा है। मौजूदा डेटा का अभाव खासतौर पर चिंताजनक है, क्योंकि सर्दियों के मौसम में यमुना और नालों में पानी का बहाव कम हो जाता है और तापमान गिरने के कारण पानी की गुणवत्ता और भी खराब हो सकती है। इसके साथ ही झाग (frothing) जैसी समस्या बढ़ने की संभावना रहती है, जिससे नदी और नालों की सफाई व निगरानी और महत्वपूर्ण हो जाती है।

साल 2019 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) को आदेश दिया था कि वह जवाबदेही तय करने के लिए हर महीने पानी की गुणवत्ता का डेटा तैयार करे और उसे सार्वजनिक करे। यमुना नदी के लिए जनवरी 2013 से, और नालों व ट्रीटमेंट प्लांटों के लिए 2019 से नियमित रिपोर्ट उपलब्ध कराई जा रही थी। पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए दिल्ली में पल्ला से असगरपुर तक यमुना के आठ अलग-अलग स्थानों से नमूने लिए जाते हैं। इनमें बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD), घुली हुई ऑक्सीजन, केमिकल ऑक्सीजन डिमांड, pH लेवल और हानिकारक बैक्टीरिया (fecal coliform) जैसे मानकों की जांच की जाती है। शहर के 25 से अधिक मुख्य नालों के लिए भी इसी तरह के परीक्षण किए जाते हैं, ताकि पानी की गुणवत्ता पर नजर रखी जा सके और प्रदूषण नियंत्रित किया जा सके।

25 अक्टूबर की आखिरी उपलब्ध रिपोर्ट के आंकड़े बेहद चिंताजनक रहे। छठ पूजा से पहले हथिनीकुंड बैराज से अतिरिक्त पानी छोड़े जाने के बावजूद, बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) का स्तर 25 mg/l तक पहुँच गया, जो कि सुरक्षित सीमा 3 mg/l से लगभग आठ गुना अधिक है। वहीं, मल संबंधी बैक्टीरिया (fecal coliform) का स्तर 2,500 MPN की मानक सीमा के मुकाबले 8,000 MPN तक पहुँच गया। अक्टूबर की शुरुआती रिपोर्ट में स्थिति और भी गंभीर थी, जिसमें BOD 33 mg/l और बैक्टीरिया का स्तर 21,000 MPN दर्ज किया गया। तुलना के लिए, पिछले साल दिसंबर में BOD 70 mg/l तक उछल गया था और बैक्टीरिया का स्तर खतरनाक रूप से 8.4 मिलियन (84 लाख) MPN तक पहुँच गया था।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय पारदर्शिता बेहद जरूरी है, ताकि यह पता चल सके कि नदी सबसे नाज़ुक स्थिति में होने पर प्रदूषण का स्तर क्या है। ‘अर्थ वॉरियर’ के नाम से जाने जाने वाले यमुना कार्यकर्ता पंकज कुमार ने कहा, “यह साफ नहीं है कि नवंबर और दिसंबर में नमूने लिए ही नहीं गए या उन्हें साझा नहीं किया जा रहा है। मॉनसून के बाद नदी का बहाव कम होने से पानी की गुणवत्ता और खराब हो जाती है। हम अक्टूबर से नदी में झाग कम करने वाले रसायन का छिड़काव होते देख रहे हैं, लेकिन पानी की गुणवत्ता पर इसका क्या असर पड़ रहा है, यह किसी को नहीं पता।”

कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि डेटा की कमी यमुना नदी के स्वास्थ्य पर नज़र रखने की कोशिशों को कमजोर करती है। ‘साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल’ (SANDRP) के सदस्य और यमुना कार्यकर्ता भीम सिंह रावत ने कहा, “हम जानते हैं कि सर्दियों में पानी की गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है। आम तौर पर कोई भी व्यक्ति पिछले साल के आंकड़ों से तुलना करके देख सकता है कि सुधार हुआ है या नहीं। डेटा का गायब होना नदी के शासन के लिए एक बुरा उदाहरण पेश करता है।”

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