…और कितने बाबूलाल?
इसी छत्तीसगढ़ में आईएएस रहे बाबूलाल अग्रवाल के कारनामों को लोगों ने करीब से देखा-सुना. कैसे शैल कंपनियों के जरिए करोड़ों रुपए खपाए जाते रहे. खरोरा के ग्रामीणों को ही नहीं मालूम था कि उनके खातों में इतनी रकम है, जितनी पूरी जिंदगी हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी कमाई नहीं जा सकती. खैर तब मामला फूटा, तो बाबूलाल अग्रवाल को तिहाड़ की सलाखें मिली. नौकरी भी जाती रही. लगा था इस घटना के बाद दूसरे ब्यूरोक्रेट सबक लेंगे, लेकिन कहावतें यूं ही नहीं बनाई गई हैं. ढाक के तीन पात वाले हालात अब भी हैं. सरकार एक सर्वे ही करा ले तो दर्जनों ब्यूरोक्रेट निकलेंगे, जो पर्दे के पीछे बड़े व्यापारी-उद्योगपति हैं. अब इस मामले को देखिए बिलासपुर संभाग के एक जिले में कलेक्टरी करने गए थे, देखते-देखते साहब ने राइस मिल खोल लिया. 2500 रुपए समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की सरकारी स्कीम ने किसानों का ही भला नहीं किया, ऐसे आईएएस को भी कमाई का एक जरिया दे दिया. राइस मिल में संभावनाएं दिखी थी, सो बिलासपुर शहर में अपनी पदस्थापना के दिनों कमाए गए दोस्तों को पार्टनर बनाकर राइस मिल शुरू कर दिया गया. पद और पैसा था ही. जहां राइस मिल खोला जाना था, उस जमीन का महज 13 दिनों में डायवर्सन हो गया. ग्राम पंचायत बुलाकार फटाफट एनओसी ले ली गई. कलेक्टरी थी, नियमों के पार जाने की पात्रता आ गई थी. रोकने-टोकने वाला कोई था नहीं. सब काम आसानी से हो गया.
जज साहब का गुस्सा !
छत्तीसगढ़ के एक जिले के सीजेएम कोर्ट में पदस्थ जज साहब का पुलिस वालों पर गुस्सा चर्चा में है. जज साहब अपने इस गुस्से को जाहिर तो नहींं करते, मगर समझने वाले बखूबी समझ रहे हैं. पता चला है कि इससे पहले जज साहब जिस जिले में पदस्थ थे, वहां वह खुद पुलिस की घुड़की का शिकार हो गए थे. तब उनके मामले की विवेचना कर रहे प्रधान आरक्षक स्तर के पुलिस कर्मी ने ना केवल उन्हें खूब हड़काया था, बल्कि चार घंटों तक जमीन पर बिठाए रखा था. पूछताछ में जब उनसे नाम, पता और काम धाम पूछा गया, तब विवेचक की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. स्याही जिस रफ्तार से प्रकरण दर्ज कर रही थी, उसी रफ्तार से थम गई. पैर पकड़ कर माफी मांगने के अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीं था. मामला खत्म हुआ, लेकिन इस घटना ने जज साहब के दिमाग में वर्दी की ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि साहब भुलाए नहीं भूल रहे. चर्चा है कि जज साहब की कोर्ट में आने वाले वर्दीधारी पुलिस कर्मियों को घंटों इंतजार कराया जाता है. शायद इससे जज साहब का गुस्सा थोड़ा शांत होता होगा. अब जिले के पुलिस अधिकारी-कर्मचारी इस जज को साधने में जुटे हैं, मगर जज का दिल है कि मानता नहीं.
फैसला ‘ऑन द स्पॉट‘
बिलासपुर संभाग के एक जिले के पुलिस कप्तान ने पहले ही ख़टराल सरीके पुलिसवालों को घुड़की पिला दी थी कि अवैध कारोबारों पर पुलिस का संरक्षण या समझौता जैसी बातें सुनने में भी आई तो खैर नहीं. सब कुछ पुलिस कप्तान के मंशा अनुरूप ही चल रहा था, लेकिन हाल में एक कांग्रेस नेता जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर देहात के एक थाने में पदस्थ ASI की लेनदेन की करतूतों का पुलिंदा लेकर पुलिस कप्तान के दफ्तर पहुंच गए. मूंछ में तिनका वाली कहावत कहने लगे. ASI की करतूत सुनते ही कप्तान साहब का पारा ऐसा चढ़ा कि फौरन कांग्रेस नेता के साथ 15 किलोमीटर दूर थाने जा पहुंचे. ASI की पेशी हुई और प्रथम दृष्टया शिकायत सही पाए जाने पर ऑन द स्पॉट फैसला सुना लिया. ASI लाइन अटैच कर दिया गया. ऐसा कम ही होता है कि जब किसी तरह की शिकायत पर पुलिस कप्तान खुद ही जांच करने पहुंच जाए. बहरहाल इस घटना से जिले के दूसरे पुलिस अधिकारी-कर्मचारी सहमे हुए हैं. फिलहाल साहब का मिजाज उनके मिजाज से मेल नहीं खा रहा. आगे का पता नहीं. जब तक मिजाज में नरमी ना आ जाए, तब तक नदी के बहाव की तरह बहने का संकल्प ले रखा है. हाईवे पर लगी सूचनात्मक तख्तियों पर लिखे गए संदेश ‘सतर्कता ही बचाव है’ पर अमल किया जा रहा है.
एसीबी पहुंची राजस्थान
एसीबी-ईओडब्ल्यू चीफ आरिफ शेख पुलिसिंग में क्रिएटिविटी का तड़का लगाने के माहिर खिलाड़ी है. जिस जगह रहे, वहां राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक तमगा हासिल जरूर किया. नए साल में फुल फ्लेज्ड आईजी प्रमोट हो जाएंगे. सुनाई पड़ा है कि सरकार जल्द ही उन्हें किसी बड़े जिले में बतौर आईजी भेज सकती है, मगर जाने के पहले एसीबी को मथने का सिलसिला चल रहा है. एसीबी की इन्वेस्टिगेशन में थोड़ी और धार आए, इसलिए पिछले दिनों एक दर्जन से ज्यादा अधिकारियों की टीम लेकर राजस्थान पहुंच गए. राजस्थान इसलिए क्योंकि वहां की एसीबी का इस्टेबलिशमेंट देश का सबसे अच्छा माना जाता है. डीजी स्तर के अधिकारी की अगुवाई में एसीबी चलती हैं, चार डीआईजी रैंक के अधिकारी हैं, हर रेंज में एसीबी का अपना मजबूत विंग है, जिसकी कमान एसपी स्तर के अधिकारी के हाथों है. हर जिले में एक एडिशनल एसपी रैंक का अधिकारी तैनात है. नए-नए गैजेट्स के जरिए ट्रैप करने की तकनीक है. बताते हैं कि राजस्थान की एसीबी देश के दूसरे राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा अधिकार संपन्न भी है. दो साल पहले माइनिंग डिपार्टमेंट के एसीएस को ट्रैप कर पकड़ा था. इन्हीं खूबियों की वजह से आरिफ शेख ने सोचा होगा कि छत्तीसगढ़ की एसीबी को भी तकनीकी तौर पर प्रशिक्षित किया जाए, सो टीम लेकर राजस्थान पहुंच गए. बताते हैं कि राजस्थान की एसीबी ने इंफॉर्मेशन का सत्यापन, रेड का एग्जीक्यूशन, नई तकनीक का इस्तेमाल कर ट्रैप करने किए जाने का तरीका जैसे कई प्रैक्टिसेस को करीब से देखा-समझा. उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ की एसीबी भी आने वाले दिनों में अपने काम से खूब पहचान बनाएगी. वैसे आरिफ शेख एसीबी-ईओडब्ल्यू चीफ रहते मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने का हुनर बखूबी सीख चुके है. कई धुरंधर नप गए.
बीजेपी की खिचड़ी
बीजेपी में अहम बदलावों के बीच सुनाई पड़ा है कि पार्टी के भीतरखाने जबरदस्त खिचड़ी पक रही है. इस खिचड़ी में चुनाव में जीत दिलाने वाली सामग्री डाली जा रही है. इसका स्वाद कितना गहरा उतरेगा फिलहाल कोई नहीं जानता. मगर चर्चा है कि चुनावी रणनीति का जो खांका तैयार किया गया है, उसकी यह शुरुआती कड़ी है. पहले प्रदेश अध्यक्ष, फिर नेता प्रतिपक्ष और अब प्रदेश प्रभारी को बदले जाने का समीकरण इसी का हिस्सा है. पुरंदेश्वरी जब तक रही, अपना हंटर चलाती रही, अब उनकी जगह आए संघ पृष्ठभूमि के ओम माथुर यूपी, गुजरात जैसे राज्यों में अपनी रणनीतिक कौशल का लोहा मनवा चुके हैं, जाहिर है इस नियुक्ति के अपने मायने हैं. माथुर हाल ही में केंद्रीय चुनाव समिति में भी लिए गए. पार्टी में बड़ा ओहदा रखते हैं. पुरंदेश्वरी के फरमान को फिर भी कई नेता नजरअंदाज कर देते थे. माथुर के साथ ऐसा नहीं हो पाएगा. बीजेपी की ये सब रणनीति नजर आने वाली है, लेकिन जो नहीं दिखने वाली रणनीति है, वह खिचड़ी के स्वाद में तड़का लगाने जैसा है. बताते हैं कि बस्तर संभाग और बिलासपुर संभाग को साधने के लिए चुनाव के ठीक पहले दो अहम नियुक्तियां भी होंगी. दूसरी पार्टियों से बीजेपी में आने वाले दो तेजतर्रार और आक्रामक छवि के नेताओं को तैनात किए जाने की चर्चा है. ये नेता साम-दाम-दंड-भेद की अपनी राजनीति के लिए पहचाने जाते हैं. एक की तैनाती बस्तर संभाग को साधने के लिए, तो दूसरे की बिलासपुर संभाग की सीटों पर जीत दिलाने के लिए की जा सकती है. ये दोनों नेता अपने-अपने राज्यों में चुनावी राजनीति के वह खिलाड़ी साबित हुए हैं, जिन्होंने विरोधियों को पटखनी देने का हुनर सीख रखा है. बहरहाल बीजेपी की रणनीति तैयार करने के पीछे जो सबसे मजबूत चेहरा दिखाई देता है, वह है अजय जामवाल. जामवाल के आने के बाद से बीजेपी में तेजी आ रही है. संगठन के भीतर अब चर्चा होने लगी है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कोई टक्कर दे सकता है, तो वह जामवाल ही हैं. बीजेपी में कहा जाता है कि जामवाल जहां रहे वहां सरकार बनी. खैर छत्तीसगढ़ के हालात दीगर राज्यों की तरह नहीं है. यहां की राजनीति की बिसात बिछाने और मनमाफिक चाल चलने के कौशल में भूपेश बघेल माहिर खिलाड़ी बन चुके हैं. टक्कर आसान नहीं होगी.
कौन बनेगा सूचना आयुक्त ?
मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के दो पदों के लिए विज्ञापन जारी हुए हैं. एम के राऊत और अशोक अग्रवाल का कार्यकाल खत्म होने के बाद ये पद रिक्त हो रहे हैं. जाहिर है इन पदों के लिए कई दावेदार खड़े होंगे. राज्य शासन ने पिछली नियुक्ति में दो पत्रकारों को सूचना आयुक्त बनाया था. छत्तीसगढ़ में पहली मर्तबा पत्रकारों को इस पद के लिए चुना गया था. हालांकि दीगर राज्यों में ये व्यवस्था पहले से रही है. जाहिर इस दफे जब आयोग में दो पद रिक्त हो रहे हैं, तो इन पदों के लिए रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट, जज, पत्रकारों के बीच से कई-कई दावेदार उभरकर सामने आएंगे. चूंकि राऊत और अग्रवाल दोनों आईएएस थे, लिहाजा माना जा रहा है कि इस दफे सरकार रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट को ही इन पदों पर बिठाएगी. सूचना आयुक्त की नियुक्ति के लिए वैसे तो बाकायदा एक कमेटी है, लेकिन नियुक्ति का प्रिविलेज मुख्यमंत्री के पास ही है. देखना होगा कि लॉटरी में किसका नंबर लगता है.
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