शब्बीर अहमद, भोपाल। उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी उतारने के मामले में बीजेपी से आगे निकल गई है. लेकिन लिस्ट आने से पहले से लेकर अब तक तीन झटके पार्टी को लग चुके हैं. दो पूर्व विधायक पार्टी छोड़कर चले गए तो वहीं एक टिकट के दावेदार ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की ताल ठोक दी है. सवाल उठ रहा है कि आखिरकार कांग्रेस की बगावत कैसे शांत होगी?

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दमोह उपचुनाव में बड़ी जीत हासिल करने के बाद से कांग्रेस खेमे में जबरदस्त उत्साह नजर आ रहा था, लेकिन एक के बाद एक पलायन करते नेताओं से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उपचुनाव में जाने पहले ही जोश कम हो आ रहा है. सबसे पहले जोबट से पूर्व विधायक सुलोचना रावत और उनके बेटे ने पार्टी का साथ छोड़ा. इसके बाद खंडवा से पिछले 6 महीने से दावेदारी कर रहे अरुण यादव ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया.

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कांग्रेस इन सबसे संभल पाती उससे पहले मंगलवार को पार्टी को दो झटके लगे. पहला जोबट से कांग्रेस के टिकट के दावेदार दीपक भूरिया ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान कर दिया तो वहीं भगवानपुर से पूर्व विधायक राजकुमार सिंह सोलंकी ने हरदा में सीएम की मौजूदगी में बीजेपी का दामन थाम लिया.

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अब सवाल उठ रहा है कि कांग्रेस को एकजुट कौन करेगा और निराश हो चुके कार्यकर्ताओं में जोश कौन भरेगा. जिससे चुनाव में जीत हासिल हो सके. अब कांग्रेस को टूट और भीतरघात से बचाने के लिए दिग्विजय सिंह को आगे करने की तैयारी पूरी कर ली गई है, क्योंकि 2018 विधानसभा में भी दिग्विजय सिंह को जिम्मेदारी दी गई थी. जिसको उन्होंने बखूबी निभाया भी था.

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कांग्रेस एकजुटता को लेकर प्लानिंग कर रही है तो वहीं बीजेपी चुनाव प्रबंधन समिति के प्रमुख भूपेन्द्र सिंह का कहना है कि कांग्रेस गुटों में बटी पार्टी है. कांग्रेस के अंदर कोई नेता नहीं रहना चाहता है. चाहे वो प्रदेश हो या फिर देश. अगर कांग्रेस को उपचुनाव जीतना है तो अपने बिखरे कुनबे को एकजुट करना होगा, नहीं तो परिणाम कांग्रेस के खिलाफ जा सकते हैं. अब देखना ये भी होगा पार्टी मे जो भगदड़ मची हुई है उसे दिग्विजय सिंह कितना रोक पाते हैं.

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