पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबन्द। आदिवासी आश्रम चोरी की शिकायत लेकर गोबरा के सरपंच समेत सैकड़ों ग्रामीण मैनपुर पहुंचे. लिखित शिकायत देकर कहा कि 24 साल से संचालित आश्रम 10 साल पहले गायब हो गया है. ढूंढने से अब तक नहीं मिला, अब आप मदद करें.

जिले के मैनपुर थाना में गोबरा के ग्रामीणों ने आदिवासी बालक-बालिका आश्रम चोरी की शिकायत लेकर पहुंचे हैं. गोबरा के सरपंच रामस्वरूप मरकाम व पूर्व सरपंच रेखा ध्रुव के नेतृत्व में आदिवासी महिला-पुरुष शनिवार को मैनपुर थाना पहुंचकर थाना प्रभारी के नाम लिखित में आवेदन दिया है. ग्रामीणों ने बताया है कि वर्ष 1989 से बड़ेगोबरा में आदिवासी बालक बालिका आश्रम शाला संचालित हो रहा था, लेकिन वर्ष 2012-13 में चोरी हो गया. आश्रम की खोज-खबर करते 10 साल बीत गए हैं, लेकिन आज तक आदिवासी बालक बालिका आश्रम नहीं मिला है.

ग्रामीणों ने बच्चों के भविष्य की दुहाई देते हुए अब थानेदार से आश्रम ढूंढने में मदद करने की गुहार लगाई है. पहली बार आई ऐसी चोरी के मामले को लेकर पुलिस भी सकते में है. थाना प्रभारी सूर्यकांत भारद्वाज ने ग्रामीणों के भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अफसरों से रायशुमारी लेकर उचित कार्रवाई करने का भरोसा दिया है. थाना प्रभारी ने बताया कि बड़ेगोबरा वासियों ने एक लिखित आवेदन दी है, जिसमें आदिवासी बालक-बालिका आश्रम शाला चोरी होने की शिकायत किए हैं.

जानिए पूरा मामला

तहसील मुख्यालय मैनपुर से 22 किमी दूर दूरस्थ वनांचल में बसा ग्राम पंचायत गोबरा में शासन द्वारा विशेष पिछड़ी कमार जनजाति के बच्चो को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने सन् 1989 में आदिवासी बालक आश्रम प्रारंभ किया गया था. यहां 100 बच्चे अध्यनरत थे. नए भवन निर्माण के लिए 2011 में 20 लाख से ज्यादा की मंजूरी भी मिल गई, लेकिन अफसरों ने ठेकेदार की सुविधा को देखते हुए बगैर अनुमति के भवन को बड़ेगोबरा के बजाय भाठीगढ़ में बना दिया. गोबरा के सरपंच रामस्वरूप मरकाम एवं ग्रामीणों के मुताबिक इस फैसले का भारी विरोध किया गया था.

ग्रामीणों की भावनाओं को ध्यान देने की बजाए 2013 में रातों-रात बगैर किसी को बताए इस आश्रम के पूरे सामाग्री को भाठीगढ़ में शिफ्ट कर दिया गया. बीते दस सालों से भाठीगढ़ में बड़ेगोबरा आश्रम का बोर्ड लगाकर आश्रम संचालित किया जा रहा है. दूरी व भौगोलिक परिस्थिति का हवाला देकर ग्रामीणों ने नेता, विधायक, सांसद व मंत्री तक से इस बात की शिकायत की. हर उस सरकारी दफ्तर के दहलीज भी गए, जहां से उन्हें उम्मीद थी. उम्मीद टूटने के बाद अब थाने पहुंचकर कानूनी लड़ाई का भी ग्रामीणों ने आगाज कर दिया है.

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