रायपुर.  मानव और हाथी के बीच संघर्ष कम करने के लिेए वन्य जीव प्रेमी और पर्यावरणविद् नितिन सिंघवी ने मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव (वन) और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) को सुझाव प्रेषित करते हुए समस्या ग्रस्त क्षेत्रों से हाथियों को ट्रान्सलोकेट करने की आवश्यकता बताई है.

नितिन सिंघवी ने बताया कि जब कभी भी स्थान विशेष पर समस्या बढ़े वहां से हाथियों को ट्रान्सलोकेट करने की आवश्यकता तब और बढ़ जाती है, जब मामला तरुण हाथी का हो. उन्होंने बताया कि नर हाथी को हाथियों का परिवार तरुण अवस्था (10 से 14 वर्ष की उम्र) में अलग कर देता है, ऐसे में वह वैसा ही महसूस करता है जैसे बच्चा पहली बार बोर्डिंग स्कूल जाने पर महसूस करता है. सामान्यः वह कुछ समय तक अपनी मां के परिवार के आस-पास ही कुछ दूरी पर विचरण करता है, परंतु वह अपने को असुरक्षित समझ सकता है, ऐसे में मानव दखलअन्दाजी जैसे भीड़ द्वारा घेरा जाना, लगातार सायरन वाली गाड़ियों से घण्टों से खदेड़़ा जाना, पटाखा फोडना, मिर्ची फेंकना, हेलोजन लाइट उसे विचलित कर देती है, और वह अधिक असुरक्षित महसूस करता है.

नर हाथी तरुण उम्र में भी वर्ष में एक बार मद में आ सकता है, इस दौरान वह और आक्रमक हो जाता है. नर हाथी, परिवार से अलग होने से 10 से 15 साल तक अकेले या दूसरे नर हाथियों के साथ घूमता है तथा पुनरूत्पादन के लिये लगभग 30 वर्ष की उम्र से किसी हाथी परिवार से कुछ समय के लिए जुड़कर फिर अलग हो जाता है. नर हाथी लगभग 75 से 80 प्रतिशत जीवन अकेले गुजारता है, परंतु हम उसे दल से भटका हुआ कहते हैं, अगर दांत है तो दल से भटका हुआ दंतेल कहते हैं.

सिंघवी ने वन विभाग को सुझाव दिया है कि चूंकि हाथी वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची एक में विलुप्त होती प्रजाति के कारण संरक्षित वन्यजीव है और अनुसूची एक में दर्ज वन्यप्राणी को पकड़कर उसे सिर्फ उचित रहवास में पुनर्वासित करने का प्रावधान है. ना तो एैसे प्राणी को बन्धक बनाया जा सकता है ना ही मारा जा सकता है. उसे उन परिस्थितियों में जब कि वह असमक्ष हो गया है और पकड़कर दूसरे वन क्षेत्र में पुनर्वासित नहीं किया जा सके तभी बन्धक बनाया जा सकता है. इसलिए छत्तीसगढ़ में आवश्यकता पड़ने पर स्वस्थ वन हाथी को ट्रानसलोकेट करने ट्रेनिंग और व्यवस्था करने का अुनरोध किया गया हैं. इसके लिए वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया (WTI) से सहयोग लिया जा सकता है.