JHARKHAND: झारखंड के चाईबासा से मानवता को शर्मसार और झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है। सदर अस्पताल प्रशासन की संवेदनहीनता के कारण एक मजबूर आदिवासी पिता को अपने मृत बच्चे का शव झोले में भरकर ले जाना पड़ा। घंटों इंतजार के बाद भी जब एंबुलेंस नहीं मिली, तो लाचार पिता पैदल ही गांव की ओर निकल पड़ा। एंबुलेंस के अभाव में 4 माह के मासूम बेटे के शव को पिता थैली में डालकर घर तक ले गया. इस घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया. वहीं स्वास्थ्य सेवाओं के लेकर सरकार के दावों की पोलकर रख दी है. स्वास्थ्य सिस्टम की पोल खोलने वाली शर्मनाक घटना प्रकाश में आते ही सियासत शुरू हो गई. पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा कि राज्य बनने के 25 वर्षों बाद भी इस से ज्यादा अमानवीय एवं अफसोसजनक क्या हो सकता है? एक गरीब पिता को एम्बुलेंस नहीं मिल पाई.

बेटे की मौत के बाद शोकाकुल पिता डिम्बा चातोम्बा ने अस्पताल प्रशासन से शव को गांव तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध कराने की बार-बार गुहार लगाई। डिम्बा ने बताया कि उन्होंने घंटों तक अस्पताल परिसर में एंबुलेंस का इंतजार किया, लेकिन उनकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। गरीब पिता के पास न तो कोई अपना निजी वाहन था और न ही उसके पास इतने पैसे थे कि वह बाहर से किसी निजी वाहन का किराया वहन कर सके।

पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा के नवामुंडी प्रखंड के बाद बालजोड़ी गांव के रहने वाले डिंबा चितोंबा नामक व्यक्ति अपने लगभग 4 माह के बेटे को इलाज के लिए सदर अस्पताल में भर्ती कराया था. लेकिन इलाज के दौरान उसके बेटे की मौत हो गई. वहीं शव को घर लाने के लिए पिता ने एंबुलेंस के लिए काफी देर तक इंतजार किया, लेकिन एंबुलेंस नहीं मिलने पर बेबस पिता बेटे के शव को थैले में लेकर घर पहुंचा.

स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने भी सोशल मीडिया पर ही कार्रवाई करने की बात कही. उन्होंने लिखा कि चाईबासा से जुड़ी एक घटना है, जिसमें एक परिवार के बच्चों को झोले में ले जाने का दृश्य दिखाया गया. यह मामला मेरे संज्ञान में आते ही मैंने तत्काल संज्ञान लिया है. संबंधित प्राधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. सिविल सर्जन से इस मामले पर विस्तृत और तथ्यात्मक जवाब तलब किया गया है.

बेटे की मौत के बाद शोकाकुल पिता डिम्बा चातोम्बा ने अस्पताल प्रशासन से शव को गांव तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस उपलब्ध कराने की बार-बार गुहार लगाई। डिम्बा ने बताया कि उन्होंने घंटों तक अस्पताल परिसर में एंबुलेंस का इंतजार किया, लेकिन उनकी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। गरीब पिता के पास न तो कोई अपना निजी वाहन था और न ही उसके पास इतने पैसे थे कि वह बाहर से किसी निजी वाहन का किराया वहन कर सके।

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