संदीप ठाकुर, लोरमी। मुंगेली जिले के लोरमी तहसील से 25 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ो वाली माँ भुवनेश्वरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है. यहां नवरात्र के अवसर पर वनांचल गांव डोंगरीगढ़ में खासा उत्साह देखने को मिल रही है. यहां लोग दूर-दूर से ऊंचे पहाड़ पर विराजमान मां भुवनेश्वरी महामाया के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. सैकड़ों सीढ़ी और दुर्गम रास्तों को पार कर अपनी मनोकामना लेकर भक्त यहां आते हैं. ऐसा माना जाता है कि यहां आकर मां की आराधना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है.

बता दें कि डोंगरीगढ़ मंदिर को मां बम्लेश्वरी डोंगरगढ़ का रूप माना जाता है. वही मंदिर चारो तरफ जंगल से घिरा हुआ है. यहां इस वर्ष 952 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किया गया है.

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दर्शनार्थी शरद पांडेय ने कहा कि जब से पहाड़ पर माँ महामाया मंदिर की स्थापना हुई है तब से वह लगातार माता के दर्शन के लिए आ रहे हैं उन्होंने कहा कि यहां जो भी अपनी मनोकामना लेकर आता है माता उसकी हर मनोकामना पूरी करती है, यहां छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के अलावा अन्य जगहों से लोग बड़े उत्साह के साथ दर्शन के लिये आते हैं.

एक दूसरे दर्शनार्थी विनोद श्रीवास ने कहा कि लगभग 600 सीढ़ी चढ़कर देवी माँ का दर्शन करने आते हैं यहां मैय्या के चरणों मे आकर बहुत शांति और सुकून मिलता है. यहां सच्चे दिल से जो भी मनोकामना मांगते हैं माता उनकी मनोकामना पूरी करती है.

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वही मां भुवनेश्वरी मंदिर समिति डोंगरीगढ़ के सदस्य लखन लाल यादव ने बताया कि यहां का मंदिर बहुत ही प्राचीन है पूर्व जमाने मे यहां नगाड़े और शेर की दहाड़ का आवाज भी सुनाई देता था। इसके बाद 1992 में ग्राम एवं क्षेत्रवासियों के द्वारा माता भवानी के मंदिर का निर्माण कराया गया. जिसके बाद दूर दूर से दर्शनार्थी यहां आकर मनोकामना ज्योति प्रज्वलित कराते हैं, यहां प्रति वर्ष नवरात्रि के अवसर पर 9 दिनों तक विशेष पूजा अर्चना के सांथ भागवत कथा पुराण का आयोजन किया जाता है.

डोंगरीगढ़ मंदिर में माता की सेवा करने वाले पुजारी मन्नू दास वैष्णव ने बताया कि आदिकाल से पहाड़ो वाली माँ महामाया देवी का यहां स्थान है. सैकड़ों साल पहले माता उनके पिता के सपने में आईं और पहाड़ पर अपने होने की बात कही थी. इसके बाद जब सभी गांव वाले उस जगह पर गए तो देखा कि दो विशाल चट्टानों के बीच में मातारानी की मूर्ति विराजमान थी. इसके बाद यहां ज्योति कलश प्रज्वलित किया गया. बाद में ग्रामीणों एवं दानदाताओं के अथक प्रयास से वहां पर एक छोटा सा मंदिर बना कर विधि-विधान के साथ पूजा की गई. तब से यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. इसलिए नवरात्रि के दिनों में यहां 9 दिनों तक धार्मिक कार्यक्रम के साथ-साथ मेले का भी आयोजन होता है इसमें दूर दूर से हजारों भक्त शामिल होते हैं.

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