हिंदू धर्म में पति-पत्नी का संबंध अत्यंत पवित्र माना गया है. लेकिन इसके बावजूद, कई परंपराओं में यह माना जाता है कि पति-पत्नी को एक ही थाली में भोजन नहीं करना चाहिए. इसके पीछे केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक और ऊर्जा संतुलन से जुड़े धार्मिक कारण हैं. यह परंपरा कोई भेदभाव नहीं, बल्कि ऊर्जा संतुलन, मर्यादा और मानसिक शुद्धता बनाए रखने की दिशा में एक धार्मिक अनुशासन है. 

धार्मिक कारण

प्राचीन शास्त्रों के अनुसार, भोजन को यज्ञ की तरह माना गया है. भोजन करते समय हर व्यक्ति की अपनी ‘आजीविका ऊर्जा’ सक्रिय होती है. यदि दो लोग, विशेषकर पति-पत्नी, एक ही थाली से भोजन करें तो उनकी ऊर्जा आपस में टकरा सकती है, जिससे मानसिक संतुलन और आत्मिक शांति प्रभावित हो सकती है.

गृहस्थ धर्म की मर्यादा

शास्त्रों में गृहस्थ धर्म में एक-दूसरे के प्रति आदर, संयम और सीमाएं बनाए रखना आवश्यक बताया गया है. एक ही थाली में भोजन से अनुशासन में कमी आ सकती है.

मानसिक और भावनात्मक भिन्नता

हर व्यक्ति का मनोदशा और विचार-प्रवाह अलग होता है. भोजन करते समय यह माना गया है कि व्यक्ति के विचार और भावनाएं भोजन में स्थानांतरित हो सकती हैं. एक ही थाली से खाने पर यह मिश्रण कभी-कभी तनाव, असहमति और कलह का कारण भी बन सकता है.

आचार्य परंपरा

पुराने समय में गुरु-शिष्य, मां-बेटा, या पति-पत्नी- हर संबंध की अपनी मर्यादा थी. एक ही थाली में भोजन न करने का नियम, उन सीमाओं को सम्मान देने का प्रतीक था.

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