देहरादून। 30 जून को रिटायर होने से पहले ही उत्तराखंड कैडर के आईएएस अधिकारी डॉ. राम विलास यादव को उत्तराखंड सतर्कता विभाग ने गिरफ्तार कर लिया है. आईएएस पर अपनी आय से 500 गुना से भी अधिक सम्पति इकट्ठा करने का आरोप है. लखनऊ के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने आईएएस के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मामले को उठाया था. चार वर्ष की पड़ताल के बाद आईएएस के खिलाफ मई में मुकदमा दर्ज हुआ था. यूपी सरकार ने भी आईएएस के खिलाफ जांच के लिए उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखा था.

उत्तराखंड के मूल निवासी डाक्टर राम विलास यादव ने सन् 92 में यूपी पीएसएस परीक्षा उतीर्ण कर डिप्टी कलेक्टर के रूप में सेवा शुरू की थी. 2016 में वे अपने गृह राज्य उत्तराखण्ड चले गए थे. यूपी में वे विभिन्न पदों पर रहने के साथ ही लखनऊ विकास प्राधिकरण के सीईओ भी रहे थे. वर्तमान में वे उत्तराखंड सरकार में कृषि विभाग के अपर सचिव है. इनके खिलाफ लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत मिश्रा ने राम विलास यादव के खिलाफ शिकायत की थी, जिस पर यूपी सरकार ने उत्तराखंड सरकार को यादव की जांच करवाने को पत्र लिखा था.

उतराखण्ड के सतर्कता विभाग के यादव के खिलाफ 2018 से जांच शुरू की थी और 2021 के सितंबर में विजिलेंस को रिपोर्ट सौपी थी. जिसके बाद सरकार की सहमति मिलने पर मई में यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. गिरफ्तारी से बचने के लिए यादव ने हाईकोर्ट की शरण ली थी. पर हाईकोर्ट ने कोई राहत न देते हुए विजिलेंस के सवालों का सामना करने के निर्देश यादव को दिए थे. जिसके बाद वे मंगलवार को विजिलेंस विभाग के समक्ष पेश हुए थे. पूछताछ में सवालों का गोलमोल जवाब देने पर देर रात दो बजे गिरफ्तार कर लिया गया है.

500 करोड़ की संपत्ति मिलने का अनुमान

मुकदमा कायम करने के बाद विजिलेंस ने उनके लखनऊ, गाजीपुर, देहरादून स्थित आवासों में छापे मारे थे. पूछताछ व अभिलेखों के आधार पर उनकी कुल वार्षिक आय 50 लाख 48 हजार 204 रुपए व व्यय तीन करोड़, 12 लाख 37 हजार 756 रुपये होना पाया गया है. जानकारी के अनुसार, यादव सतर्कता विभाग की पूछताछ में आय और व्यय में अंतर का कारण नहीं बता पाए थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया है. इसके साथ ही उनकी पत्नी कुसुम को भी अब पूछताछ के लिए बुलाया गया है.

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