IDBI Bank Privatization Strike: रायपुर. वित्त मंत्री द्वारा IDBI बैंक के निजीकरण की घोषणा के बाद बैंक और बीमा क्षेत्र की ट्रेड यूनियनों ने इस फैसले का जोरदार विरोध किया है. 11 अगस्त को IDBI कर्मचारियों की देशव्यापी हड़ताल का समर्थन करते हुए, कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए. प्रदर्शनकारियों ने 100% एफडीआई, रीजनल रूरल बैंक के सरकारी हिस्से की बिक्री और IDBI के निजीकरण को रद्द करने की मांग की.
प्रदर्शन में एआईआईईए के संयुक्त सचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि वर्तमान में सरकार और LIC के पास IDBI बैंक की 95% हिस्सेदारी है. निजीकरण के बाद यह हिस्सेदारी घटकर सिर्फ 34% रह जाएगी, यानी 66% पूंजी निजी निवेशकों के पास चली जाएगी. यह सीधे तौर पर बैंक का निजीकरण ही है.
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उन्होंने बताया कि IDBI की स्थापना 1964 में एक विकास वित्त संस्था के रूप में हुई थी, जो 2005 में IDBI बैंक के साथ विलय हो गई. अब यह एक सामान्य वाणिज्यिक बैंक के रूप में काम कर रहा है.
IDBI Bank Privatization Strike. धर्मराज महापात्र ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बैंक खरीदने वाले निवेशक कनाडा और दुबई जैसे विदेशी देशों के हैं, जिससे यह न केवल निजीकरण बल्कि विदेशीकरण भी हो जाएगा.
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पहले लक्ष्मी विलास बैंक को सिंगापुर की DBS बैंक ने खरीदा था और CSB बैंक में कनाडा की फेयरफैक्स कंपनी मुख्य निवेशक बनी थी.
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महापात्र ने कहा कि सरकार बैंकिंग क्षेत्र में विदेशी निवेश और मतदान अधिकारों पर पहले जो सीमाएँ रखती थी, अब उन्हें कम कर रही है. 2003 में IDBI अधिनियम के निरस्त होने के वक्त सरकार ने आश्वासन दिया था कि वह 51% से कम हिस्सेदारी नहीं छोड़ेगी, लेकिन अब यह घटकर केवल 15% रह जाएगी.
IDBI Bank Privatization Strike. उन्होंने सवाल उठाया, क्या यही है वह ‘आत्मनिर्भर भारत’ जिसकी सरकार बात करती है?
महापात्र ने बताया कि IDBI बैंक के पास करीब ₹3 लाख करोड़ जनता की जमा राशि है और बैंक के ₹30,000 करोड़ के परिचालन लाभ का फायदा निजी निवेशकों को मिलेगा. यह जनता के पैसों की खुली लूट है. उन्होंने आम जनता से अपील की कि वे IDBI कर्मचारियों की हड़ताल का समर्थन करें.
इस विरोध प्रदर्शन को आरडीआईईयू के महासचिव सुरेंद्र शर्मा ने भी संबोधित किया और राजेश पराते ने इसकी अध्यक्षता की.
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