प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाह के अपूरणीय टूटने को तलाक का कानूनी आधार बनाया जाना चाहिए. कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों और निर्देशों पर अमल करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में आवश्यक संशोधन करने पर विचार करने का आग्रह किया है.

हाईकोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी जब एक बार अलग हो गए और यह अलगाव लंबे समय तक जारी रहता है और उनके बीच संबंध सुधारने की कोई भी गुंजाइश न बची हो. ऐसी स्थिति में जब पति या पत्नी में से कोई तलाक के लिए आवेदन करता है तो यह अच्छी तरह समझा जा सकता है कि विवाह पूरी तरह टूट चुका है. कोर्ट ने कहा कि जब यह अच्छी तरह से समझ में आ जाए कि पति-पत्नी के बीच संबंध सुधारने की अब कोई भी गुंजाइश नहीं बची है. ऐसी स्थिति में तलाक देने में विलंब करने से दोनों पक्षों का नुकसान होगा. हिंदू विवाह अधिनियम में इस संबंध में कोई कानून न होने के कारण अदालतें विवाह के अपूरणीय टूटने को आधार बनाकर तलाक का आदेश नहीं दे सकती हैं.

इसे भी पढ़ें – बढ़ते डेंगू के मामलों पर कोर्ट ने लिया संज्ञान, अधिकारीयों को दिए ये निर्देश…

यह आदेश न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी एवं न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार चतुर्थ की खंडपीठ ने आईपीएस अधिकारी असित कुमार पांडा की ओर से दाखिल तलाक की अर्जी स्वीकार करने के मेरठ परिवार न्यायालय के आदेश के खिलाफ दाखिल पुनरीक्षण याचिका पर दिया है.