दोनों रहिमन एक सेए जों लों बोलत नाहिंण्
जान परत हैं काक पिकए रितु बसंत के नाहिं
मनुष्य को बुरा कहलाने से नहीं डरना चाहिए, किन्तु बुरा होने या बुरे काम करने से डरना चाहिए, जबकि होता इसके ठीक विपरीत है। लोग-बुरे कर्म करने से उतना नहीं डरते जितना इस बात से डरते हैं कि कोई बुरा न कह दे। मनुष्य का यह स्वभाव हो गया है कि वह स्वयं भले दूसरों की निंदा-आलोचना करता रहे, किन्तु स्वयं अपनी निंदा-आलोचना उसे पसंद नहीं है। कोई थोडी सी उसकी आलोचना करे तो वह दुखी ही नहीं क्रुद्ध भी हो जाता है। यहा तक कि आलोचना करने वाले को अपना विरोधी तक मान लेता है, भले ही वह आलोचना कितनी ही सही क्यों न हो और उसकी भलाई के लिए ही क्यों न की गई हो। जबकि यह मानना चाहिए कि निंदक व्यक्ति हमारी निदा करके हमें सावधान कर रहा है तथा हमारे दोषो को निकालने की हमें प्रेरणा दे रहा है। सदगुरु कबीर की यह साखी सदैव स्मरण रहै-
निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय, बिन पानी बिन साबुन निर्मल करे सुभाय।
इस संबंध में यदि कुंडली का विष्लेषण किया जाए तो यदि किसी व्यक्ति के तीसरे स्थान का स्वामी अनुकूल, उच्च तथा सौम्य ग्रहों से संरक्षित हो तो ऐसे व्यक्ति बुराई को भी भलाई में बदलने में सक्षम होते हैं वहीं यदि किसी जातक का तीसरा स्थान विपरीत कारक हो अथवा राहु जैसे ग्रहों से पापक्रांत हो तो ऐसे लोग किसी की छोटी सी बात या आलोचना सहन नहीं कर पाते और क्रोधित हो जाते हैं.
अतः आपको अपने हित में या किसी की कहीं कोई छोटी बात भी बुरी लगती है तो अपनी कुंडली का विष्लेषण करा लें तथा कुंडली में इस प्रकार की कोई ग्रह स्थिति बन रही हो तो तीसरे स्थान के स्वामी अथवा कालपुरूष की कुंडली में तीसरे स्थान के स्वामी ग्रह बुध अर्थात् गणेषजी की उपासना, गणपति अर्थव का पाठ का हरी मूंग का दान करने से आलोचना को साकारात्मक लेकर अपनी बुराई को धीरे-धीरे दूर करने का प्रयास करने से आप निरंतर बुराई से बचते हुए सफलता प्राप्त करेंगे तथा लोगों के बीच लोकप्रिय भी होंगे।