रायपुर. धन के स्वामी कुबेर की पूजा – यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः। स पण्डितः स श्रुतिमान गुणज्ञः। स एवं वक्ता स च दर्शनीयः। सर्वेगुणाः कांचनमाश्रयन्ति।। -श्री भर्तृहरि …
नीति का यह श्लोक आज के अर्थ-प्रधान युग का वास्तविक स्वरूप व सामाजिक चित्र प्रस्तुत करता है. आज के विश्व में धनवान की ही पूजा होती है. जिस मनुष्य के पास धन नहीं होता, वह कितना ही विद्वान हो, कितना ही क्यों न चतुर हो, उसे महत्वता नहीं मिलती. इस प्रकार ऐसे बहुत से व्यक्ति मिलते हैं, जो सर्वगुण सम्पन्न हैं, परन्तु धन के बिना समाज में उनका कोई सम्मान नहीं है. जितना आप-व्यय करते हैं, उस पर आप की समृद्धि निर्भर है.
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आप कितना कमाते हैं, यह प्रश्न इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना खर्च है. आप सौ रुपया कमाते और डेढ़ सौ खर्च करते हैं, तो बढ़े हुए पचास रुपयों के लिए आप या तो चोरी करेंगे, गाँठ काटेंगे, धोखा देंगे या अनीति की राह पर चलेंगे. आपका खर्च करना आपकी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करेगा. चाहे आपकी आमदनी कुछ भी क्यों न हो. आपके खर्च अधिक होने का अभिप्राय है कि आपकी आवश्यकताएँ बढ़ी हुई हैं. उनमें कुछ जरूरी और कुछ व्यर्थ के खर्च हो सकते हैं. धन योग प्रबल और व्यय भाव निर्बल होना चाहिए.
अतः यह आवश्यक है कि जन्म कुंडली में धन द्योतक ग्रहों और भावों का पूर्ण रूपेण विवेचन किया जाए. ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली में धन योग के लिए द्वितीय भाव, पंचम भाव, नवम भाव और एकादश भाव विचारणीय है. पंचम-एकादश धुरी का धन प्राप्ति में विशेष महत्व है.
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महर्षि पराशर के अनुसार जैसे भगवान विष्णु के अवतरण के समय पर उनकी शक्ति लक्ष्मी उनसे मिलती है तो संसार में उपकार की सृष्टि होती है. उसी प्रकार जब केन्द्रों के स्वामी त्रिकोणों के भावधिपतियों से संबंध बनाते हैं तो बलशाली धन योग बनाते हैं. यदि केन्द्र का स्वामी-त्रिकोण का स्वामी भी है, जिसे ज्योतिषीय भाषा में राजयोग भी कहते हैं. इसके कारक ग्रह यदि थोड़े से भी बलवान हैं तो अपनी और विशेषतया अपनी अंतर्दशा में निश्चित रूप से धन पदवी तथा मान में वृद्धि करने वाले होते हैं.
पराशरीय नियम, यह भी है कि त्रिकोणाधिपति सर्वदा धन के संबंध में शुभ फल करता है. चाहे, वह नैसर्गिक पापी ग्रह शनि या मंगल ही क्यों न हो. किसी जातक को अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर धनयोग को बढ़ाने के आवश्यक उपाय करना चाहिए. कालपुरूष की कुंडली से देखा जाए तो किसी भी जातक को धन योग बढ़ाने के लिए शुक्र के मंत्र का जाप करना, कुबेर पूजा करनी चाहिए साथ ही सुहाग की सामग्री दान करना और अन्न का दान करना चाहिए.
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