रायपुर. हिंदू पंचाग के अनुसार सूर्य देवता को भग नाम से इस माह में उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और जो इनसे युक्त उन्हें भगवान माना गया है.
वहीं, मान्यता यह भी है कि इस मास में मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए क्योंकि उनका शुभ फल नहीं मिलता. इसका एक कारण यह भी है कि पौष मास में सूर्य अधिकतर समय धनु राशि में रहते हैं. धनु राशि के स्वामी बृहस्पति माने जाते हैं. मान्यता है कि देव गुरु बृहस्पति इस समय देवताओं सहित सभी मनुष्यों को धर्म-सत्कर्म का ज्ञान देते हैं. लोग सांसारिक कार्यों की बजाय धर्म-कर्म में रूचि लें इसी कारण इस सौर धनु मास को खर मास की संज्ञा ऋषि-मुनियों ने दी.
पौष मास में सूर्योपासना का महत्व –
पौराणिक ग्रंथों की मान्यता के अनुसार पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके भग नाम से करनी चाहिये. पौष मास के भग नाम सूर्य को ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है. पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने व इनका उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है. कुछ पुराणों में पौष मास के प्रत्येक रविवार तांबे के पात्र में शुद्ध जल, लाल चंदन, लाल रंग के पुष्प डालकर भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को अर्ध्य देने की भी मान्यता है.
मान्यता है कि इस मास में प्रत्येक रविवार व्रत व उपवास रखने और तिल चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है. पौष अमावस्या का भी बहुत अधिक महत्व माना जाता है. इस दिन को पितृदोष, कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये भी इस दिन उपवास रखने के साथ-साथ विशेष पूजा अर्चना की जाती है. पौष मास हमें संयमी बनाकर आध्यात्मिक ऊर्जा जुटाने व आत्मोन्नति का सुअवसर प्रदान करता है.सूर्य के तेज और देवगुरु बृहस्पति की दिव्यता से संपन्न पौष मास आध्यात्मिक रूप से समृद्धि देने वाला है.
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सूर्य अपने साथ घोड़ों के रथ में बैठकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करता है और परिक्रमा के दौरान कहीं भी सूर्य को एक क्षण भी रुकने की इजाजत नहीं है. लेकिन सूर्य के सातों घोड़े सारे साल भर दौड़ लगाते-लगाते प्यास से तड़पने लगे. उनकी इस दयनीय स्थिति से निपटने के लिए सूर्य एक तालाब के निकट अपने सातों घोड़ों को पानी पिलाने हेतु रुकने लगे. लेकिन तभी उन्हें यह प्रतिज्ञा याद आई कि घोड़े बेशक प्यासे रह जाएं लेकिन उनकी यात्रा को विराम नहीं लेना है. नहीं तो सौर मंडल में अनर्थ हो जाएगा. सूर्य भगवान ने चारों ओर देखा तत्काल ही सूर्य भगवान पानी के कुंड के आगे खड़े दो गधो को अपने रथ पर जोत कर आगे बढ़ गए और अपने सातों घोड़े तब अपनी प्यास बुझाने के लिए खोल दिए गए. अब स्थिति ये रही कि गधे यानी खर अपनी मन्द गति से पूरे पौष मास में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे और सूर्य का तेज बहुत ही कमजोर होकर धरती पर प्रकट हुआ. अपने इस अघोर कर्म से निवृत्त होने के लिए 14 जनवरी मकर संक्रांति के दिन से सूर्य पुनः अपने सात अश्वों पर सवार होकर आगे बढ़े और धरती पर सूर्य का तेजोमय प्रकाश धीरे-धीरे बढ़ने लगा.