महत्वाकांक्षा ही व्यक्ति से नैतिक-अनैतिक, वैधानिक-अवैधानिक, सामाजिक-असाजिक कार्य कराती है. महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है किंतु अति सर्वत्र वर्जयेत् अर्थात् अपनी सामथ्र्य से अधिक की चाह अथवा गलत तरीके से महत्वाकांक्षा की पूर्ति पतन की ओर ले जा सकती है. कई बार ये महत्वाकांक्षा कानूनी शिकंजे का कारण भी बनती है. कइ विषय पर्र बार सामान्य कारण तो कई बार कोई विवाद, कोई गुनाह, संपत्ति से संबंधित झगड़े इत्यादि का होना आपकी कुंडली में स्पष्ट परिलक्षित होता है.

अगर इस प्रकार के कोई प्रकरण न्यायालय तक पहुंच जाए तो उसमें जय प्राप्त होगी या पराजय का मुंह देखना पड़ सकता है अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है. इसका पूर्ण आकलन ज्योतिष द्वारा किया जाना संभव है. सामान्यतः कोर्ट-कचहरी, शत्रु प्रतिद्वंदी आदि का विचार छठे भाव से किया जाता है. सजा का विचार अष्टम व द्वादश स्थान से इसके अतिरिक्त दसम स्थान से यश, पद, प्रतिष्ठा, कीर्ति आदि का विचार किया जाता है. साथ ही सप्तम स्थान में साझेदारी तथा विरोधियों का प्रभाव भी देखा जाता है.

इन स्थान पर यदि कू्रर, प्रतिकूल ग्रह बैठे हों तो प्रथमतया न्यायालयीन प्रकरण बनती है. इनकी दशाओं एवं अंतदशाओं में निर्णय की स्थिति में जय-पराजय का निर्धारण किया जा सकता है. इसके साथ ही षष्ठेश एवं अष्टमेश किस स्थिति में है, उससे किस प्रकार का प्रकरण होगा तथा क्या फल मिलेगा इसका निर्धारण किया जा सकता है. जिन ग्रहों की विपरीत स्थिति या परिस्थितियों में कष्ट उत्पन्न हों, उसके ग्रहों की स्थिति, दशाओं का ज्ञान कर उसके अनुरूप आवश्यक उपाय जीवन में कष्टों की समाप्ति कर जीवन सुखमय बनाता हैं.