दाल पानीये ऐसी डिस जिसे निमाड़ और राजस्थान के आदिवासी क्षेत्रों में बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है. आज भी इसे परंपरागत शैली से बनाया जाता है. इसे बनाने के लिए अर्क यानी अकाव के पत्ते या पलाश यानी ‘परसा’, ‘ढाक’, ‘टेसू’ कहते हैं के ऊपर रखकर पकाया जाता है.

दाल पानीये अलीराजपुर क्षेत्र का एक पारंपरिक भोजन है जो शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पसंद किया जाता है. यह अधिकांश रेस्तरां और होटलों में आसानी से उपलब्ध है. यह मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय है. दाल को तुवर दाल, चना दाल, उड़द दाल, मुंग दाल का उपयोग करके तैयार किया जाता है. दाल को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगोने के बाद एक साथ पकाया जाता है. सबसे पहले, तेल की एक छोटी मात्रा में एक फ्राइंग पैन में गरम किया जाता है और फिर मसाला राय-जीरा (सरसों और जीरा) को गर्म तेल में मिलाया जाता है. फिर हरी मिर्च, लहसुन और हिंग, लाल मिर्च, हल्दी, धनिया, अदरक सहित कुछ मसाले डाले जाते हैं. कुछ क्षेत्रों में दाल का खट्टी मीठी भी बने जाती है. अंत में, उबले हुए दाल को डालकर पकाया जाता है. Read More – एक्ट्रेस जैस्मिन भसीन की तबियत हुई खराब, पेट में इंफेक्शन के कारण अस्पताल में हुई भर्ती …

पानीये को मक्के के आटे से बनाया जाता है. मक्का के आटे को, आक के पत्तों के बीच सैंडविच कि तरह रख कर बनाया जाता है और सूखे गाय के उपलों(कन्डो) की खुली आग पर भुना जाता है. जब पानीये सुनहरे भूरे रंग के हो जाते हैं, तो इसे घी के साथ किया जाता है और फिर दाल, रवा लड्डू, चावल, पुदीना चटनी, केरी (कच्चे आम) चटनी, बहुत सारे प्याज के हरे सलाद, और ताजा छाछ (चेस) के साथ परोसा जाता है. Read more – Shehnaaz Gill की बिगड़ी हालत, अचानक अस्पताल में हुई भर्ती …

आदिवासी अंचल की यह डिश दाल-बाफले की तरह है, लेकिन इसमें गेहूं की जगह मक्के का आटा उपयोग किया जाता है. कभी आदिवासी इसे अभाव के दिनों में मजबूरी में बनाते थे, लेकिन आज यह डिश बड़े-बड़े होटल के मैन्यू में शुमार हो गई है. इसकी शुरुआत कब से हुई यह तो नहीं पता, लेकिन इतनी जानकारी जरूर है कि जब से आदिवासी हैं और मक्का खाया जा रहा है, तभी से यह बनाई जा रही है.