नासिर हकीमुद्दीन, महासमुंद। जिले में कृषि भूमि के मद परिवर्तन (डायवर्सन) में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। खसरा नंबर 19/3 की कृषि भूमि को फर्जी प्रमाणपत्रों और झूठे शपथपत्र के आधार पर आवासीय प्रयोजन में बदल दिया गया। इस प्रक्रिया में पटवारी, राजस्व निरीक्षक (आरआई) और अनुविभागीय अधिकारी राजस्व (एसडीओआर) की संलिप्तता उजागर हुई है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस डायवर्सन के लिए प्रस्तुत किए गए शपथपत्र में गवाह के रूप में वर्तमान भाजपा विधायक योगेश्वर राजू सिन्हा के बड़े भाई दानेश्वर सिन्हा का नाम सामने आया है।

मामला 10 जनवरी 2022 से शुरू हुआ, जब बलदाऊ चंद्राकर नामक भूमि स्वामी ने खसरा नंबर 19/3 की 0.442 हेक्टेयर कृषि भूमि में से 12,000 वर्ग फुट जमीन का डायवर्सन कराने के लिए आवेदन किया। एसडीओ राजस्व ने इसके बाद पटवारी और आरआई को स्थल निरीक्षण और प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का आदेश दिया। 22 जनवरी को पटवारी दुधनाथ साहू ने बिना किसी वैध दस्तावेज के यह प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, जिसमें भूमि को आवासीय प्रयोजन के लिए उपयुक्त बताया गया। 24 जनवरी को आरआई मनीष श्रीवास्तव ने स्थल निरीक्षण और पंचनामा तैयार किया, जिसमें 27 बिंदुओं की जांच की गई, परंतु कई अहम बिंदुओं को या तो अधूरा छोड़ा गया या जानबूझकर अनदेखा किया गया।

उदाहरणस्वरूप, 24वें बिंदु में यह पूछा गया था कि क्या यह भूमि किसी अवैध कॉलोनी का हिस्सा है, लेकिन इसका उत्तर खाली छोड़ दिया गया। 25वें बिंदु में पूछा गया कि क्या यह भूमि कॉलोनी स्थापित करने के उद्देश्य से डायवर्ट की जा रही है, तो उसमें केवल “आवासीय प्रयोजन” लिखकर मामले को सरलीकृत कर दिया गया।

31 जनवरी 2022 को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व भागवत प्रसाद जायसवाल ने छत्तीसगढ़ शासन के उस स्पष्ट आदेश की अवहेलना की, जिसमें निर्देश दिया गया था कि किसी भी डायवर्सन आवेदन के लिए नगर तथा ग्राम निवेश विभाग की अनुमोदित विकास योजना के नक्शे से मिलान कर लैंड यूज की पुष्टि आवश्यक है। शासन के आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया था कि ऐसे आवेदन नगर तथा ग्राम निवेश कार्यालय को अभिमत हेतु न भेजे जाएं। बावजूद इसके, अधिकारी ने न तो लैंड यूज की जांच की और न ही नक्शे की प्रमाणिकता का सत्यापन किया, बल्कि कूट रचित नक्शे के आधार पर आदेश पारित कर दिया।

27 जनवरी को बलदाऊ चंद्राकर ने 20 रुपये के स्टांप पर एक शपथपत्र प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने यह दावा किया कि पूरी भूमि आवासीय प्रयोजन की है, लेकिन वे आर्थिक कठिनाइयों के चलते संपूर्ण भूमि के डायवर्सन शुल्क का भुगतान नहीं कर सकते। इसलिए केवल 12,000 वर्गफुट भूमि को डायवर्ट करना चाहते हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि यह भूमि अवैध कॉलोनी में नहीं आती। इस शपथपत्र पर भाजपा विधायक के भाई की गवाही ने इस दस्तावेज को और अधिक विश्वसनीय बनाने का प्रयास किया।

हालांकि, मास्टर प्लान 2031 के अनुसार, इस भूमि का उपयोग केवल कृषि कार्य के लिए ही किया जा सकता है। इसके बावजूद, अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेजों और शपथपत्र के आधार पर करोड़ों रुपये मूल्य की भूमि को डायवर्ट कर एक अवैध कॉलोनी स्थापित करने का रास्ता खोल दिया।

कलेक्टर ने कार्रवाई का दिया आश्वासन

लल्लूराम डॉट कॉम के संवाददाता ने जब इस मामले में कलेक्टर विनय कुमार लंगेह से बात की तो उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कुछ भी हुआ है तो मैं बिल्कुल जांच कर कर उचित दंडात्मक कार्रवाई करूंगा।

यह पूरा मामला न केवल सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाने का प्रमाण है, बल्कि प्रशासनिक भ्रष्टाचार, राजनीतिक संरक्षण और राजस्व विभाग की मिलीभगत का गंभीर उदाहरण भी है। अब सवाल यह उठता है कि क्या इस मामले में उच्च स्तरीय जांच होगी या यह भी अन्य मामलों की तरह दबा दिया जाएगा?

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