पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद. जिले में राजनीतिक रसूख वाले नेता बेखौफ अवैध रेत खदान चला रहे हैं. एक दिन में 200 से ज्यादा हाइवा रेत का परिवहन इन्हीं खदानों से होता है. दबंगई ऐसे की वैध खदानों को बंद करना पड़ा. सरकार को कई लाखों का राजस्व का नुकसान हो रहा है. जिसका फायदा उठाते हुए नेता और अफसर अपनी जेब मोटी कर रहे हैं. वहीं विपक्षी दल भाजपा भी ये कह रही है कि, कांग्रेस के करप्शन मैनेजमेंट फार्मूला के आगे प्रशासन भी नतमस्तक है.

अवैध खदानों को प्रशासन का सह ?

गरियाबंद जिले में रेत खदान के लिए पैरी नदी में 11 घाट को अधिकृत किया गया है, लेकिन इससे ज्यादा प्रशासन की मौन स्वीकृति से अनाधिकृत खदानें चल रही हैं. इनमें से तर्रा, कूकदा ( कुटैना), चौबेबांधा, सिंधौरी, पितईबंद, लचकेरा का खदान है. जहां से रोजाना 80 से 100 ट्रिप हाइवा रेत का अवैध परिवहन हो रहा है. माइनिंग और नेशनल ग्रीन ट्यूबरी के सारे नियम को ठेंगा दिखाते हुए पैरी का सीना चीरा जा रहा है. सभी खदानों में फोकलेन और चेन माउंटेन मौजूद है, जो दिन-रात रेत का दोहन कर रही है.

करप्शन मैनेजमेंट का फार्मूला

भाजपा के RTI प्रकोष्ठ के नेता प्रीतम सिन्हा ने आरोप लगाया है कि, कांग्रेस का करप्शन मैनेजमेंट का फार्मूला है. बड़े नेता का सरकारी योजनाओं में सीधा दखल है, इसलिए कांग्रेस के कुछ नेताओं को खुश करने रेत खदान को नियम खिलाफ दोहन करने दिया गया है. अवैध रूप से चल रही सभी खदानों में प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेसी नेताओं का हाथ है.

खनिज अधिकारी का जवाब देने में सूखा गला

मामले में पक्ष जानने जिला खनिज अधिकारी फागुलाल नागेश से बात करने की कोशिश की गई तो पहले उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया. जब दूसरे माध्यम से संपर्क किया गया तो तबियत खराब का हवाला देकर इस मामले में बाद में बात करने की बात कही. वहीं मामले को जानने और समझने जब LALLURAM.COM ने इसकी ग्राउंड रिपोर्ट की तो कई चौकाने वाले मामले सामने आए.

तर्रा में दबंगों का कब्जा

सबसे ज्यादा रेत की निकासी तर्रा के अवैध रेत घाट से हो रही है. यहां जब हम पहुंचे तो, यहा का नजारा भयानक था. दो किमी तक नदी में ही मिट्टी और बेशरम डालकर निकासी के लिए सड़कें बनाई गई थी. दूर-दूर तक खनन के लिए बड़ी नालियां मौजूद थी. एक चैन माउंटेन दुर्ग जिले भेजने के लिए रेत भर रहा था. दूसरा फोकलेन 100 मीटर दूर पर खड़ा था. हाइवा के ड्राइवर ने कहा, 10 चक्के भरने के लिए 2500 रुपए दिया गया है. गाड़ी बड़ी होने पर कीमत 4 हजार तक जाती है.


कांग्रेसी नेता है संचालक

संचालक का नाम पूछने पर वहां मौजूद लोगों ने जिले के एक कांग्रेसी नेता का नाम बताया. इस खदान से नेशनल हाइवे तक पहुंचने सुरसाबांधा बस्ती के बीचो-बीच वाहन गुजरती है. भारी वाहनों से गली दब गई है. उपसरपंच गौतम साहू ने बताया कि, गांव की सीमा पर चल रहे अवैध रेत घांट, गांव की दुर्दशा और भारी वाहन गुजरने से भयभीत होने की शिकायत करने 28 अप्रैल को कलेक्ट्रेट गए थे. कलेक्टर प्रभात मालिक से इसकी शिकायत भी की, लेकिन अब तक मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. उल्टे राजनीतिक रसूख वाले कथित ठेकेदार ग्रामीणों को धमका रहे.

राजस्व देने वाली खदान बंद

सरकंडा घाट में दो रेत खदान की मंजूरी दी गई थी. लगभग 3 माह तक खदान से लाखों का राजस्व मिला. ग्रामीणों को मजदूरी भी मिल रही थी, लेकिन अब दोनो बंद है. वजह इसके 5 किमी की दूरी में मौजूद तर्रा के अवैध खदान के अलावा,राजिम से कम दूरी पर सुगम जगह पर मौजूद कुकदा(कुटैना),चौबेबांधा, सिंधोरी , पितईबंध जैसे घाटों पर खदान के अवैध संचालन की छूट देना. इन खदानों में मशीन जल्द लोड के देती है. रॉयल्टी और मजदूरी नहीं देना होता, इसलिए वैध खदान की तुलना में 1000 रुपए कम कीमत पर मिल जाता है. संचालक दूसरे जिले का है. स्थानीय रसूखदारों के आगे नियम कायदे नहीं चली. ऐसे में सरकड़ा को बंद करना पड़ा.

पुलिस और यातायात प्रभारी भी सेट है ?

अधिकृत खदान परसदा जोशी से एक हाइवा रेत भरकर निकली. राजिम से पहले कोमा के पास राजिम पुलिस का एक सिपाही ने वाहन को रुकवाया, कुछ बातचीत की फिर आगे बढ़ गया. रोके गए वाहन चालक से हमने बात की तो उसने रेत का रॉयल्टी पेपर नहीं दिखाया. पूछने पर वाहन मालिक से बात कराया, जिसने बताया की नए रायपुर के यातायात प्रभारी के लिए यह रेत जा रही है. अब सवाल उठता है की वाहन रोकने वाला जवान कार्रवाई क्यों नहीं किया. इसके पीछे दूसरी हाइवा के पास सुबह 11 बजे की रॉयल्टी पर्ची थी, पर वह मार्ग से साढ़े 4 बजे गुजर रहा था. आशंका है कि, लीगल खदान में भी एक पर्ची काटकर दिन भर बगैर रॉयल्टी काटे रेत परिवहन करवा रहे हैं.

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