भोपाल. सड़क निर्माण में लगी कंपनी दिलीप बिल्डकॉन के खिलाफ अवैध उत्खनन के मामले में लगभग सवा दो करोड़ का जुर्माना लगाया गया है, लेकिन अवैध उत्खनन से भी बड़ी बात यह है कि डेढ़ साले यह पुराना प्रकरण शिवराज सरकार के जाने के बाद अब जाकर सामने आया है.

दरअसल, वर्ष 2015 में दिलीप बिल्डकॉन कंपनी ने एनएच-78 के शहडोल मुख्यालय से अनूपपुर के राजनगर तक सड़क निर्माण का कार्य किया, जिसमें लालपुर व समदा टोला में ली गई लीज से तीन से चार गुना उत्खनन किया गया. यह बात पर्यावरण संरक्षण मंडल (पीसीबी) की जांच में सामने आई, जिसके बाद कंपनी के दोनों प्रमुखों के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की 1986 की धारा 15 एवं 16 के तहत दण्डनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है, साथ ही मुख्य दण्डाधिकारी शहडोल के न्यायालय में वाद पंजीकृत कराया गया है.

विभागीय सूत्रों और खनिज विभाग के दस्तावेज बताते हैं कि वर्ष 2015 में एनएच-78 निर्माण के दौरान शहडोल से अनूपपुर जिले के रामनगर तक दिलीप बिल्डकॉन ने सड़क निर्माण किया था, इसके लिए शहडोल के लालपुर, समदा टोला में पत्थर उत्खनन के लिए अस्थाई अनुज्ञा ली थी, लेकिन कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि रामावतार त्यागी ने मिली अनुमति से 3 – 4 गुना अधिक उत्खनन किया गया. मामले की शिकायत और जांच के बाद उत्खनन पर जुर्माना भी तय हुआ, लेकिन तत्कालीन भाजपा सरकार में दिलीप सूर्यवंशी के प्रभाव व संबंधों के चलते प्रशासनिक कर्मचारियों ने मामले को दबाये रखा.

गौरतलब है कि इस मामले को पर्यावरणविद अफसर खान ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की भोपाल न्यायालय के संज्ञान में लाया था, वहीं पूरे मामले की शिकायत केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भी भेजी गई थी, खान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश चांद ने न्यायालय में उक्त मामले की पैरवी की थी, जिसके बाद मामले की जांच शुरू की गई.

अवैध उत्खनन की पुष्टि होने पर निरस्त की अनुज्ञा

सड़क निर्माण के लिए दिलीप बिल्डकॉन को बुढ़ार तहसील के समदाटोला में खसरा क्रमांक 38 रकवा 4.50 हेक्टेयर और  सोहागपुर तहसील के लालपुर में खसरा क्रमांक 34, रकबा 4.0 एकड़ में अस्थाई पत्थर खनिज अनुज्ञप्ति स्वीकृत की गई थी, लेकिन 11 अगस्त 2017 को खनिज सर्वेयर शहडोल द्वारा मौके पर जाकर जब भौतिक सत्यापन किया गया तो दो गड्ढों में क्रमश: 22880 एवं 165006 घन मीटर उत्खनन करना पाया गया, इस तरह से कंपनी ने कुल 187886 घन मीटर उत्खनन किया गया, जबकि उसे 50000 घन मीटर प्रतिवर्ष पत्थर उत्खनन की पर्यावरणीय स्वीकृति दी गई थी. इसके बाद 16 जनवरी 2017 को अस्थाई अनुज्ञा निरस्त कर दी गई.