रायपुर. देवी जी की पूजा में पान मुख्य सामाग्री होती है. इसे संस्कृत भाषा में तांबूल भी कहा जाता है. इसका जिक्र स्कंदपुराण में भी मिलता है. मान्यता है कि देवताओं द्वारा समुद्र मंथन के समय पान के पत्ते का प्रयोग किया गया था. देवी भगवती को पान अर्पित करने का विशेष महत्व है. केवल एक ही पत्ते में संसार के सम्पूर्ण देवी-देवताओं का वास होने के कारण इसे पूजा सामग्री में इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि पान के पत्ते के ठीक ऊपरी हिस्से पर इन्द्र और शुक्र देव विराजमान होते हैं. मध्य में देवी सरस्वती का वास होता है और देवी महालक्ष्मी इस पत्ते के बिल्कुल नीचे वाले हिस्से पर बैठी होती हैं, जो अंत में तिकोना आकार लेता है.

इसके अलावा ज्येष्ठा लक्ष्मी पान के पत्ते के जुड़े हुए भाग पर बैठी होती हैं. ये वो भाग है जो पत्ते के दो हिस्सों को एक नली से जोड़ता है. विश्व के पालनहार भगवान शिव पान के पत्ते के भीतर वास करते हैं. मां पार्वती और मंगल्या देवी पान के पत्ते के बाईं ओर रहती हैं और भूमि देवी पत्ते के दाहिनी ओर विराजमान हैं. अंत में भगवान सूर्य नारायण पान के पत्ते के सभी जगह पर उपस्थित होते हैं.

ध्यान रखने योग्य बातें

जब आप पूजा के लिए पान के पत्ते खरीद रहे हों तो ध्यान रखें कि उसमें छिद्र (छेद) ना हो, पत्ते सूखे ना हों, पत्ता बीच में से फटा हुआ ना हो, चमकदार और कहीं से भी सूखा नहीं होना चाहिए. नहीं तो इससे व्यक्ति की पूजा पूर्ण नहीं होती.