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Mahakumbh 2025, डेस्क. कुंभ की बात हो और नागाओं या अखाड़ों का जिक्र ना आए ये तो हो ही नहीं सकता. क्योंकि इनके बिना कुंभ अधूरा है. साथ ही अखाड़ों और नागाओं की बात होती है तब उल्लेख आता है भगवत्पाद शिवावतार जगद्गुरु भगवान आदि शंकराचार्य का. जिन्होंने अखाड़ों की स्थापना की. इसका उद्देश्य सनातन धर्म, संस्कृति और देश की रक्षा करना है. शंकराचार्य सनातन धर्म के सर्वोच्च और सार्वभौम गुरु होते हैं. सनातन धर्म में चार शंकराचार्य हैं. यदि इन्हें सनातन धर्म की चलती-फिरती इनसाइक्लोपीडिया (Encyclopedia) कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी. क्योंकि ये वेद-शास्त्रों के मर्मज्ञ होते हैं. इसलिए आचार्य पीठ पर बैठे गुरुजनों को समझना भी इतना आसान नहीं है. फिलहाल लल्लूराम डॉट कॉम की महाकुंभ महाकवरेज की इस सीरीज में हम महाकुंभ के महत्व के बारे में जानेंगे.
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सबसे पहले जानते हैं कि कुंभ का अर्थ क्या होता है. कुंभ कलश या घड़े को कहा जाता है. ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी बताते हैं कि घड़ा जो है वो दे तरह से है, एक तो भरा हुआ है. जिसमें पानी, दूध या अमृत भरा हो, दूसरा होता है खाली. जो कुंभ है खाली घड़े को कुंभ नहीं कहा जाता. अन्यथा घड़ा कहा जा सकता है, कलश कहा जा सकता है. लेकिन जब कुंभ उसकी संज्ञा होती है मतलब वह लबालब भरा हुआ है. वो कुंभ होता है. तो ये जो कुंभ मेला है ये पूर्णता का प्रतीक है.
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भौतिकता से ऊपर नहीं उठ पाते लोग
वे आगे कहते हैं कि हमारे यहां माना जाता है कि कुंभ में परिपूर्णता कब आती है, जब हम अपने सभी स्तरों को छू लेते हैं. हमारा जो जीवन है वो दैविक, भौतिक और आध्यात्मिक इन तीन स्तरों पर इकट्ठा होकर बनता है. लेकिन हम केवल भौतिक चीजों को समझते हैं और इसमें ही सिमट जाते हैं. हमारे जीवन दैविकता और आध्यात्मिकता आ नहीं पाती. कुछ लोग भौतिकता से ऊपर उठकर दैविक तक आते हैं. लेकिन आध्यात्म तक बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं. इसलिए उनका जो जीवन है वो एकांगी रहता है. सर्वांग सम्पूर्ण नहीं बन पाता है.
कुंभ से आती है परिपूर्णता
जगद्गुरु आगे कहते हैं कि जो लोग आध्यात्मिकता तक नहीं पहुंच पाते उन लोगों के लिए कहा गया है कि ये जो कुंभ पर्व आयोजित होता है उसमें आप पहुंचिए. वहां पर आपको भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक तीनों तरह की सीख मिलेगी. गंगा, यमुना, सरस्वती के किनारे वहां पर देवी-देवता आते हैं, जो वहां पर ज्ञान का उपदेश करेंगे और इससे आपका जीवन परिपूर्ण बन जाएगा.
144 साल बाद हो रहा महाकुंभ
बता दें कि संगम नगरी 12 वर्षों बाद एक बार फिर भक्ति और आस्था से सराबोर होने जा रही है. 12 साल में होने वाले कुंभ (Maha Kumbh 2025) का इंतजार सभी को रहता है. चारो ओर भक्तिपूर्ण वातावरण, आस्था का संचार, संगम की अलौकिक छटा, यही सब श्रद्धालुओं को कुंभ की ओर आकर्षित करते हैं. लेकिन इस बार का कुंभ और भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि ये महाकुंभ 144 साल बाद आया है. यानी 12 पूर्णकुंभ होने के बाद ये अवसर आया है. जिससे इसका महत्व और ज्यादा बढ़ गया है.
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