दिल्ली हाईकोर्ट(Delhi HighCourt) ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी दोषी की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) में अपील या विशेष अनुमति याचिका लंबित है, तो उसे पैरोल या फरलो पर विचार करने से नहीं रोका जा सकता. जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने स्पष्ट किया कि सजा को निलंबित करने और जमानत देने की शक्तियाँ फरलो देने की शक्ति से भिन्न हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि जब अपीलें हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में लंबित हों, तब भी जेल प्रशासन संबंधित नियमों के अनुसार पैरोल और फरलो पर विचार कर सकता है.
हाई कोर्ट ने जेल प्रशासन तय कर परिस्थिति
अदालत ने स्पष्ट किया कि पैरोल का निर्णय हर मामले की विशेष परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहां सुप्रीम कोर्ट ने सजा निलंबन या जमानत देने से स्पष्ट रूप से इनकार किया हो. ऐसे मामलों में जेल प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि पैरोल या फरलो देने का निर्णय उचित है या नहीं.
दिल्ली कोर्ट का यह निर्णय दिल्ली कारावास नियम, 2018 के तहत फरलो की मांग से संबंधित कई याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दिया गया. पहले यह मामला एकल न्यायाधीश की बेंच के समक्ष था, जिन्होंने इसे संवैधानिक प्रश्न मानते हुए इसे बड़ी बेंच को सौंप दिया था.
कोर्ट की सिंगल बेंच ने उठाया था संवैधानिक सवाल
आदालत की एकल जज बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान यह प्रश्न उठाया कि क्या सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित रहने की स्थिति में फरलो की अनुमति न देना कैदियों के मौलिक अधिकारों, विशेषकर अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है. कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दिल्ली कारावास नियमों के 1224 के नोट 2 को इस तरह से नहीं पढ़ा जा सकता कि वह सुप्रीम कोर्ट में अपील लंबित रहने के दौरान फरलो के लिए आवेदन करने पर रोक लगाए.
कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि पैरोल से संबंधित सिद्धांतों को फरलो पर भी लागू किया जा सकता है. चूंकि इस विषय पर विभिन्न उच्च न्यायालयों में मतभेद हैं और यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न है, इसलिए कोर्ट ने इस मामले में आर्टिकल 132 और 134 A के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की अनुमति भी दी है.
दिल्ली हाई कोर्ट का हालिया आदेश उन सभी कैदियों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत प्रदान करेगा जिनकी अपील अदालत में लंबित है. इस आदेश के कारण जेल प्रशासन अब फरलो की मांग पर निर्णय लेने में सक्षम होगा, जो पहले अपील के कारण रुका हुआ था.
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