दिल्ली हाई कोर्ट(Delhi High Court) ने एक नियुक्ति से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि सरकारी नौकरी की संवेदनशील (sensitive appointment)आधार पर मांग विशेष आपात स्थितियों के लिए होती है, और इसे परिवार के कमाने वाले सदस्य की मृत्यु के काफी समय बाद नहीं किया जा सकता.
हाई कोर्ट में जस्टिस सी. हरिशंकर और जस्टिस ओमप्रकाश शुक्ला की बेंच ने एक याचिका की सुनवाई की, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपने पिता की ड्यूटी के दौरान हुई मृत्यु के आधार पर संवेदनशील नियुक्ति की मांग की.
साल 2000 में किया था संवेदनशील नियुक्ति की मांग
याचिकाकर्ता के पिता, विजय कुमार यादव, CISF में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे और सितंबर 1988 में ड्यूटी के दौरान उनका निधन हो गया. फरवरी 2000 में, विजय कुमार की पत्नी ने संवेदनशील नियुक्ति के लिए आवेदन प्रस्तुत किया, लेकिन आवश्यक योग्यता की कमी के कारण उनका आवेदन अस्वीकृत कर दिया गया.
साल 2018 में याचिकाकर्ता और उसकी मां ने पुनः आवेदन प्रस्तुत किया. याचिकाकर्ता के वकील ने दिल्ली हाई कोर्ट में यह तर्क दिया कि 2018 में वह बालिग हो गया और उसने सभी आवश्यक योग्यताओं के साथ आवेदन किया.
दिल्ली हाईकोर्ट का अहम आदेश
जनवरी 2020 में विभाग द्वारा उसे सूचित किया गया कि वह संवेदनशील नियुक्ति के लिए अनुशंसित नहीं है. इसके बाद, याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की. सुनवाई के दौरान, दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि संवेदनशील नियुक्ति एक वैकल्पिक भर्ती प्रक्रिया नहीं है.
इसका मुख्य उद्देश्य परिवार को उस कठिन परिस्थिति से उबारना है, जो सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उत्पन्न होती है. दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसे दावों की वैधता समय के साथ समाप्त हो जाती है, और इन्हें वर्षों बाद नहीं उठाया जा सकता.
अनंत काल तक यह अधिकार नहीं रहता
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार अनिश्चितकाल तक नहीं रहता और इसे तब तक बनाए रखा जाता है जब तक कि इसे समाप्त नहीं किया जाए. यह एक विशेष आपात स्थिति से संबंधित होता है, जो समय के साथ समाप्त हो जाती है. दिल्ली हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि संवेदनशील नियुक्ति प्रक्रिया का उद्देश्य तात्कालिक राहत प्रदान करना है, न कि वर्षों बाद रोजगार की सुरक्षा करना.
क्या है संवेदनशील नियुक्ति?
संवेदनशील नियुक्ति का अर्थ है कि जब किसी सरकारी कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को अचानक आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है. ऐसे में परिवार के किसी एक सदस्य को तुरंत नौकरी प्रदान करके सहायता की जाती है. यह कोई कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि यह सरकारी नीति की सहानुभूति पर आधारित एक व्यवस्था है. यह निर्णय अन्य लंबित मामलों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करेगा और नियुक्ति प्रक्रियाओं की कानूनी समझ और समय सीमा को स्पष्ट करेगा. यह दर्शाता है कि अदालतें न्याय और प्रशासनिक व्यावहारिकता के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करती हैं.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- उत्तर प्रदेश की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
- मनोरंजन की बड़ी खबरें पढ़ने के लिए करें क्लिक