वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। हाईकोर्ट ने तृतीय श्रेणी शासकीय कर्मचारियों के हित में एक बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है, कि यदि किसी कर्मचारी को वेतन निर्धारण शाखा की गलती के कारण अधिक वेतन प्राप्त हुआ है, तो उस कर्मचारी से राशि की वसूली नहीं की जा सकती. इसके साथ ही कोर्ट ने दुर्ग जिले के बघेरा एसटीएफ में पदस्थ आरक्षक दिव्य कुमार साहू व अन्य कर्मचारियों के खिलाफ जारी वसूली आदेश को निरस्त कर दिया है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच में हुई.

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दरअसल, आरक्षक दिव्य कुमार साहू और अन्य कर्मचारियों के वेतन में त्रुटिपूर्ण निर्धारण के चलते उन्हें अधिक भुगतान किया गया था. इसकी जानकारी होने के बाद पुलिस अधीक्षक बघेरा द्वारा एक आदेश जारी किया गया, और उनके वेतन से उक्त राशि की वसूली शुरू कर दी गई. इस आदेश को चुनौती देते हुए आरक्षकों ने अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय और स्वाती कुमारी के माध्यम से हाई कोर्ट बिलासपुर में रिट याचिका लगाई थी. मामले में हाईकोर्ट की सिंगल बैंच ने पहले ही वसूली आदेश को निरस्त कर दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने इस फैसले के खिलाफ डिवीजन बेंच में अपील की थी.

हाईकोर्ट की डीबी में याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के स्टेट आफ पंजाब बनाम रफीक मसीह (2015) के ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है, कि यदि विभागीय गलती के कारण किसी तृतीय श्रेणी कर्मचारी को अधिक वेतन प्राप्त हुआ हो, तो उससे कोई वसूली नहीं की जा सकती. डिवीजन बेंच ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.

कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि यदि इन कर्मचारियों के वेतन से कोई भी राशि पूर्व में वसूली गई है, तो उसे 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित तत्काल वापस लौटाया जाए. कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि अधिक वेतन विभागीय त्रुटि से प्राप्त हुआ है, तो उसकी जिम्मेदारी कर्मचारी की नहीं मानी जा सकती. सरकारी कर्मचारियों को बिना गलती के आर्थिक दंड देना संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है.