सुनील शर्मा, भिंड। मध्य प्रदेश में कोरोना संक्रमण ने न जाने कितने हंसती-खेलती परिवारों की दुनिया उजाड़ दिया. ऐसा ही एक मामला प्रदेश के भिंड जिले से सामने आया है. जहां एक परिवार पर कोरोना का कहर इस कदर टूटा की पूरा परिवार खंड-खंड होकर बिखर गया. आलम यह कि कोरोना से दस माह पहले 5 बच्चों के सिर से पिता का साया उठा, फिर 3 माह पहले मां भी कोरोना की चपेट में आकर चल बसी, और अब इस परिवार में 3 बच्ची और 2 बच्चे हैं. ये 5 बच्चे अब भीख मांगने को मजबूर हैं.
7 साल की बच्ची भीख मांगकर भरती परिवार का पेट
दरअसल, पूरा मामला जिले के दबोह थाना क्षेत्र के अमहा गांव का है. जहां कोरोना में एक परिवार का घर उजड़ गया. मां-बाप के निधन के बाद 5 बच्चे अनाथ हो गए. जिसमें से एक बच्चे की उम्र 7 साल, सबसे छोटा बच्चा 7 महीने का है. एक 7 साल की बच्ची अपने 4 भाई-बहनों की गांव वालों की मदद से देखभाल कर भरण पोषण कर रही है. गांव में घर-घर जाकर खाना मांगती है, तब जाकर मासूम नौनिहालों के पेट की आग शांत करा पाती है.
श्मशान में रहने को मजबूर मासूम
इन मासूमों पर मां-बाप का साया तो पहले ही भगवान ने छीन लिया है, लेकिन इनके पास रहने के लिए ठीक-ठाक घर भी नहीं है. जिसमें ये मासूम बच्चे रह सके. आलम ये है कि छोटे-छोटे मासूम बच्चे माता-पिता द्वारा छोड़ी गई श्मशान के बगल में टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने के लिए मजबूर हैं. जब बरसात में पानी गिरता है तो बगल में स्थित श्मशान घाट की टीन शेड के नीचे रात बिताना सबसे बड़ी मजबूरी होती है.
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मां-बाप की कोरोना से हुई मौत
आपको बता दें कि अमाह गांव के राघवेंद्र वाल्मिकी ने दस माह पहले और उनकी पत्नी गिरजा ने 3 महीने पहले कोरोना के चलते अपनी जान गवां दी, और पीछे छोड़ अपने 5 मासूम और छोटे छोटे बच्चे गए. आज ये बच्चे अपने माता-पिता की मौत के बाद से ही भूख मिटाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं. 5 बच्चों में सबसे बड़ी बेटी की उमर महज़ 7 साल है. जबकि सबसे छोटा बच्चा 7 महीने का है. ये भाई बहन पेट पालने के लिए हर रोज़ गांव से मिलने वाली भीख के मोहताज हैं. बड़ी बेटी घर-घर जाकर खाना मांगती है, जो मिलता है उसी से भाइयों और बहनों का पेट भरती है.
लापरवाह प्रशासन ने नहीं ली बच्चों की सुध
सरकार और जिला प्रशासन की लापरवाही का भी मामला सामने आया है. प्रशासन के नकारेपन के चलते प्रधानमंत्री की पीएम केरयर फॉर चिल्ड्रेन योजना और मुख्यमंत्री की सीएम कोविड बाल कल्याण योजना का लाभ भी इन बेसहारा और अनाथ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है. जो कोरोना से अपने मां-बाप को खोने के बाद पिछले 10 महीने से गांव में भीख मांग कर पेट भर रहे हैं. बच्चों की सुध लेने आज तक कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं पहुंचा है.
मदद के लिए अधिकारियों को आदेश का इंतजार
मां-बाप की मौत के बाद पिता का घर तो रहने को है, लेकिन कच्ची झोपड़ी जो कभी गिर सकती है. जिसकी वजह से ये अनाथ बच्चे बारिश में पास बने श्मशान के टीन शेड में रातें गुजारते हैं. मिट्टी की झोपड़ी बारिश में कभी धराशायी हो सकती है. हालांकि ऐसा नहीं है कि ज़िम्मेदार इनके हालातों से वाक़िफ़ नहीं हैं, लेकिन सचिव महोदय काग़जी घोड़े दौड़ाने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का इंतज़ार करने की मजबूरी जताते हैं. सचिव अशोक पारासर का कहना है कि इन बच्चों के पास कोई भी दस्तावेज नहीं है. गांव में कनेटिविटी नहीं होने से इन बच्चों के न तो परिवार ID बन पाई, न ही आधार कार्ड. जिसकी वजह से कोरोना के तहत मृत्यु में चल रही योजनाओं का भी लाभ इन बच्चों को नहीं दिला पा रहे हैं.
सांसद ने दिया आश्वासन
आज भी इन बच्चों के आगे जीवन के कई संघर्ष हैं, लेकिन इन काग़ज़ी कार्रवाइयों के नाम पर नौनिहालों की पेट की आग को भी नजर अन्दाज किया जा रहा है. जिसे सामान्यतया ग्राम पंचायत स्तर पर भी किया जा सकता है. सांसद ने भी जल्द कलेक्टर से बात करने का आश्वासन तो दिया है लेकिन लगता है कि तब तक मासूमों को फिर भीख मांग कर ही भूख मिटानी पड़ेगी.
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