भारत कल यानि 15 अगस्त को स्वतंत्रता का 79वां वर्ष मना रहा है. सरकार चाहे किसी भी पार्टी की रहे, बड़े-बड़े दावे करते हुए कहती है कि उसने गरीबों के लिए बहुत कुछ किया. पिछले 7 दशकों में हर नेता ने देश से गरीबी हटाओं का नारा देकर खूब राजनीतिक रोटियां सेंकी. हालांकि, 150 करोड़ की आबादी वाले इस देश से गरीबी तो ख़त्म नहीं हुई बल्कि जिन्होंने ये नारा दिया वे जरूर अमीर हो गए. इस देश में गरीबी ऐसा अभिशाप माना जाता है, जहां इंसान अपनी छोटी से छोटी जरूरत को भी पूरा करने में असमर्थ रहता है. इसका उसे पछतावा तो होता है मगर वो चाहकर भी कुछ कर नहीं पाता. उत्तर प्रदेश के आगरा में कुछ ऐसा ही मामला देखने को मिला है. यहां एक शख्स की डेड बॉडी ट्रेन के अंदर संदिग्ध परिस्थितियों में मिली. रेलवे पुलिस ने शव की पहचान झारखंड निवासी सीताराम यादव के रूप में की.
पैंट की जेब से मिली पर्ची से हुई शव की पहचान
दरअसल, सीताराम की पैंट की जेब में एक पर्ची मिली थी, जिसमें उसकी जानकारी लिखी हुई थी. 38 साल का सीताराम यादव गिरिडीह जिले के जमुआ प्रखंड के मंदुआडीह गांव का रहने वाला था. रेलवे पुलिस ने सीताराम के परिवार से संपर्क किया. मगर परिवार इतना गरीब है कि वो सीताराम की डेड बॉडी आगरा से झारखंड नहीं ला सकता था. मजबूरी में परिवार ने बांस और भूसे का पुतला बनाया, उसे सीताराम के कपड़ों से सजाया, उनकी तस्वीर लगाई और नदी किनारे सामुदायिक श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की रस्म निभाई.
तीन बच्चों के सिर से उठा पिता का साया
सीताराम अपनी पत्नी और तीन बच्चों को पीछे छोड़ गया है. परिवार अब सवाल उठा रहा है कि आखिर उसका शव झारखंड क्यों नहीं भेजा गया. पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है, जबकि बच्चे अनजान में पिता की अनुपस्थिति को समझ नहीं पा रहे. गांव के लोग बता रहे हैं कि सीताराम सालों से आगरा में दिहाड़ी मजदूरी कर परिवार का पेट पाल रहा था, लेकिन इस दुखद घटना ने उनके घर को उजाड़ दिया.
पुलिस ने शव लेने के लिए दिया एक दिन का समय
सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीरों में परिवार के सदस्य पुतले का अंतिम संस्कार करते नजर आए. सीताराम के भतीजे मनोज ने बताया- पिछले हफ्ते पुलिस ने हमें फोन करके मौत की सूचना दी और कहा कि शव लेने के लिए एक दिन का समय है, वरना पोस्टमार्टम के बाद उसे स्थानीय स्तर पर अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा. लेकिन हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि हम आगरा पहुंच पाते. दो लोग ट्रेन बदलते वक्त धनबाद में रास्ता भटक गए और वापस लौट आए. मजबूरी में परिवार ने स्थानीय परंपरा का सहारा लिया और पुतले से अंतिम संस्कार किया. मनोज ने कहा, ’12 दिन के शोक के बाद इसकी राख को गंगा में विसर्जित करेंगे.’
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