महाराजगंज. उत्तर प्रदेश में कई ऐतिहासिक और पौराणिक काल से जुड़े मंदिर हैं. उत्तर प्रदेश भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है, श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है. यहां पर ज्योतिर्लिंग भी है. साथ ही कई शक्तिपीठ भी यहां स्थापित हैं. जिनकी अपनी-अपनी महत्ता है. इसके अलावा प्रदेश में कई ऐसे देवी मंदिर हैं जिनमें कुछ रामायण काल से जुड़े हैं तो कई महाभारत काल से. ऐसा ही एक मंदिर महाराजगंज जिले में स्थित है. जो मां लेहड़ा देवी मंदिर के नाम से प्रख्यात है.

प्राचीनकाल में ये स्थल आद्रवन नाम के घने जंगल से घिरा हुआ था. यहां पवह नाम की प्राचीन नदी (अब नाला) के तट पर मां वनदेवी दुर्गा का पवित्र मंदिर है. जिन्हें अदरौना या लेहड़ा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. मान्यतायों के अनुसार इस देवी मंदिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों के अज्ञातवास काल में अर्जुन ने की थी. इस धार्मिक स्थल का प्राचीन नाम ‘अदरौना देवी थान’ रहा जो वर्तमान में लेहड़ा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने अपने अज्ञातवास की अधिकांश समय यहीं के जंगलों में बीताया था.

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वनदेवी ने की थी युवती की रक्षा

इसी दौरान अर्जुन ने यहां भगवती वनदेवी की उपासना की थी. जिससे प्रसन्न होकर वनदेवी मां भगवती दुर्गा ने अर्जुन को की अमोघ शक्तियां दी थी. जिसके बाद मां भगवती के आदेशानुसार अर्जुन ने इस मंदिर की स्थापना की थी. बाद में यही ‘अदरौना देवी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई. एक अन्य जुनश्रुती के अनुसार प्राचीनकाल में ‘पवह नदी’ को नाव से पार कर रही एक युवती को जब नाविकों ने बुरी नीयत से छूना चाहा था, तो वनदेवी ने उस युवती की रक्षा खुद प्रकट होकर की थी. इसके बाद देवी ने नाविकों को नाव समेत वहीं जलसमाधि दे दी थी.

जहां शेर और मगरमच्छ बन गए थे शाकाहारी जीव

मंदिर से कुछ ही दूरी पर एक प्राचीन तपस्थली (कुटी) है. यहां साधु संतों की समाधियां हैं, जिन्होंने इस तपस्थली में अपने जीवनकाल में यहां पर तपस्या की थी. इन्हीं साधु योगियों में एक प्रसिद्ध योगी बाबा वंशीधर का नाम आज भी संत सम्मानपूर्वक लेते हैं. उन्हें एक सिद्ध योगी के तौर पर जाना जाता है. योग के बल पर उन्होंने कई चमत्कार और लोक कल्याण का काम किया था. कहा जाता है कि बाबा का प्रभाव इतना था कि उन्होंने एक शेर और मगरमच्छ को शाकाहारी जीव बना दिया था.

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जब अंग्रज अफसर ने देवी पर चलाई थी गोली

एक किवदंती ये भी है कि मंदिर से तीन किलोमीटर दूर अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी. एक बार एक अंग्रेज अफसर शिकार के दौरान इस जंगल में पहुंचा था. उसने देखा कि लोग देवी की पिंडी की पूजा कर रहे हैं. उसने पिंडी पर गोलियां बरसा दी. इस पर देवी की पिंडी से खून की धारा निकलने लगी. जिसे देखकर अफसर डर गया और उलटे पांव वहां से भाग खड़ा हुआ था. लेकिन मंदिर से एक किलोमीटर दूर ही उसकी घोड़े सहित मौत हो गई थी. जिसके बाद उस स्थान पर अंग्रेज की समाधि बना दी गई.