नीलम राज शर्मा, पन्ना। सरकारी हीरा कार्यालय में बहुचर्चित हीरा की हेरा-फेरी मामले में कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने हीरा पारखी पर 420 का मुकदमा के लिए सहमति दे दी है। पीड़ित को लगभग 13 साल बाद न्याय मिलने की उम्मीद जगी है।
बता दें कि हीरा पारखी ने 2.50 कैरेट का क्लीन हीरा बदल कर उसके बदले मजदूर को दूसरा नकली हीरा दे दिया था। परेशान होकर मजदूर ने कोर्ट की शरण ली थी। उसे कई सालों बाद उसे जुर्म दर्ज कराने में न्याय मिला है।
जानकारी के अनुसार पन्ना जिला देश दुनिया में उच्च किस्म के हीरो के लिए प्रसिद्ध है। यहां हीरा का कालाबाजार रोकने बकायदा विभाग बनाया गया है। यहां विभाग के कर्मचारी द्वारा धोखाधड़ी का सनसनीखेज मामला सामने आया था। बृजकिशोर विश्वकर्मा 65 वर्ष निवासी कछियाना मोहल्ला अजयगढ़ ने हीरा कार्यालय पन्ना से अनुमति लेकर दहलान चौकी क्षेत्र में निजी भूमि पर हीरा खदान लगाई। जिसमें 11 अक्टूबर 2012 को उसे 2.5 कैरेट का उज्जवल किस्म का हीरा मिला था। वृद्ध हीराधारक ने अपने हीरे को जिला हीरा कार्यालय में जमा कर रसीद प्राप्त की। अक्टूबर 2012 में ही उक्त हीरे को जिला हीरा कार्यालय द्वारा नीलामी में रखा गया, लेकिन नीलाम नहीं हो पाया। पुनः जनवरी 2013 में हीरे को नीलामी में शामिल किया लेकिन कोई खरीददार नहीं मिला। लगभग तीन साल बाद बृजकिशोर विश्वकर्मा ने 13 जनवरी 2016 को एक लाख पांच सौ रुपये में अपना ही जमाशुदा हीरा स्वयं खरीद लिया। रॉयल्टी राशि 11,581 रुपए एवं आयकर की राशि 1992 रुपए 11 फरवरी 2013 को चालान के माध्यम से स्टेट बैंक पन्ना में जमा कर दी।
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जब वह 14 फरवरी 2013 को अपनी पत्नी कुसुम विश्वकर्मा, देवीदयाल, मुन्ना कुशवाहा, नन्हे सिंगरौल के साथ हीरा कार्यालय पहुंचा, जहां तत्कालीन हीरा पारखी के द्वारा आवश्यक कार्यवाही पूरी करने के बाद एक हीरा बृजकिशोर को दिया गया।उक्त हीरे को लैंस से चैक किया गया तो वह हीरा नहीं था, बल्कि बदला हुआ दूसरा हीरा था। इस संबंध में हीरा पारखी को बताया गया। हीरा पारखी ने उससे कहा कि यह हीरा उसे वापस कर दो। हीरा परखी द्वारा भी उससे कहा गया कि धोखे से हीरा बदल गया होगा। 2-3 दिन बाद आना हीरा मिल जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि उक्त बात किसी को मत बताना। हीरा पारखी की बातों पर भरोसा कर मजदूर उसे हीरा वापस देकर अपने घर लौट गया। 19 फरवरी 2013 को वह पुनः हीरा कार्यालय पहुंचा और अपना हीरा मांगा तो तत्कालीन हीरा परखी द्वारा उसे गालियां देते हुए बोला हीरा वापस ले चुका है उसके पास पावती मौजूद है।
उसके इस व्यवहार से परेशान होकर न्यायालय की शरण ली और परिवाद प्रस्तुत किया। उन्होंने कोर्ट को बताया कि अनावेदक (हीरा पारखी) ने उसका हीरा बदल दिया था और बाद में हीरा वापस करने की बात कहकर उसने हीरा वापस नहीं किया। परिवादी से हीरा प्राप्ति की धोखे से पावती ले ली थी। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पन्ना प्रियंक भारद्वाज ने परिवाद के विचारण उपरान्त यह पाया कि अनावेदक ने 14 फरवरी 2013 को योजनाबद्ध तरीके से 13 फरवरी 2013 की तारीख दर्शाकर छल-कपटपूर्वक बेईमानी से बृजकिशोर विश्वकर्मा का हीरा हड़प कर पावती पर हस्ताक्षर करा लिए थे। जबकि परिवादी बृजकिशोर 13 फरवरी 2013 को हीरा कार्यालय गया ही नहीं था। परिवादी का हीरा वापस करने का आश्वासन देने के बाद उसे वापस नहीं किया। इस तरह हीरा तत्कालीन हीरा पारखी ने परिवादी की मूल्यवान सम्पत्ति बेईमानी से हड़प कर छल किया, जो भादंसं की धारा 420 के अंतर्गत अपराध है। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में उल्लेख किया है कि तत्कालीन हीरा परखी के विरुद्ध धारा 420 के तहत अपराध का संज्ञान लिए जाने के पर्याप्त आधार विद्यमान हैं।
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