रायपुर. सूर्योदय के पूर्व और सायंकाल सूर्यास्त के उपरांत 48 मिनटों के (दो घटिकाओं के) काल को ‘संधिकाल’ कहते हैं. संधिकाल अनिष्ट शक्तियों के आगमन का काल है. उनसे रक्षण होने के लिए धर्म ने इस काल में आचार पालन को महत्त्व दिया है. पर्वकाल में कोई भी हिंसात्मक कृत्य नहीं करते.
धार्मिक मान्यता के अनुसार संध्या के समय अर्थात् दीप जलाने के समय देवता और तुलसी के समीप दीप जलाने से घर के चारों ओर देवताओं की सात्त्विक तरंगों का सुरक्षा कवच निर्माण होता है. वातावरण में अनिष्ट शक्तियों के संचार से प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगों से घर की और व्यक्तियों की इस कवच से रक्षा होती है. इसलिए यथासंभव दीप जलाने के समय से पूर्व घर लौटें अथवा दीप जलाने के उपरांत घर से बाहर न निकलें. अधिकांश लोगों में संध्या समय की अनिष्ट शक्तियों से प्रभावित होने की स्थिति सर्वाधिक होती है. अघोरी विद्या के उपासक संध्या समय वातावरण की परिधि में प्रविष्ट अनिष्ट शक्तियों को अपने वश में कर उनसे अनिष्ट कृत्य करवाते हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार संध्या समय अधिक मात्रा में दुर्घटनाएं और हत्याएं होती हैं या बलात्कार के कृत्य होते हैं. इस काल को ‘साई सांझ’ अर्थात् ‘कष्टदायक या विनाश का समय’ कहते हैं. दीप जलाने के उपरांत स्तोत्र पाठ करने से बच्चों की स्मरण शक्ति बढती है, वाणी शुद्ध होती है और उच्चारण भी स्पष्ट होने में सहायता मिलती है.
श्लोक
शुभं करोतु कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा.
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते.
अर्थ – हे दीपज्योति, तुम शुभ और कल्याणकारी हो, स्वास्थ्य एवं धनसंपदा प्रदान करती हो और शत्रुबुद्धिका नाश करती हो. अतः मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं.
दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः.
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते.
अर्थ – दीप का प्रकाश परब्रह्मस्वरूप है. दीप की ज्योति जगत्का दुख दूर करने वाला परमेश्वर है. दीप मेरे पाप दूर करे. हे दीपज्योति, आप को नमस्कार करता हूं.
दीप जलाने के समय घर के सभी सदस्य उपस्थित रहने से छोटे बच्चों पर अच्छे संस्कार पड़ते हैं.