अजय शर्मा, भोपाल। मध्यप्रदेश की बेहद हाई प्रोफाइल माने जाने वाले यौन शोषण ( sexual abuse) के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अहम फैसला दिया है। प्रदेश की पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी ने हाईकोर्ट जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। 2014 में उससे दबाव में इस्तीफा लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका मंजूर करते हुए उसे बहाल किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के तत्कालीन जज के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला जज को बहाल कर दिया है। महिला जज ने कहा था कि 2014 में उसे मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा था। इसी आधार पर उसे बहाल किया जाए। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में महिला जज को बहाल करने का विरोध किया था।
ये था पूरा मामला
मामला 2014 का है, पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी ने हाईकोर्ट जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और यह जांच में गलत साबित हुआ था। पिछले महीने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हाईकोर्ट के जज के खिलाफ यौन उत्पीड़न के अपने आरोपों की जांच के बाद इस्तीफा दे चुकी पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी यह आरोप नहीं लगा सकती कि उनकी शिकायत गलत पाए जाने के चार साल बाद वह इस्तीफा देने को मजबूर हुईं।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई ने महिला जज के इस्तीफे को स्वीकार करने के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही उसे मध्य प्रदेश ज्युडिशियरी में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर नियुक्त करने का आदेश दिया। हालांकि, उन्हें इस अवधि के लिए वेतन एवं भत्ते प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा। महिला जज ने कहा था कि 15 दिसंबर 2017 को जजों की जांच समिति की रिपोर्ट में याचिकाकर्ता के 15 जुलाई 2014 को दिए इस्तीफे की वजह की हाईकोर्ट ने अनदेखी की है। महिला जज के पास कोई विकल्प नहीं बचा था, इसलिए उसने एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज पद से इस्तीफा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी गई
पिछले महीने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि महिला ने कामकाज के प्रतिकूल माहौल को इस्तीफे का आधार बताया था कि उन्हें कथित तौर पर इस वजह से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन यह मामला उन्होंने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के चार साल बाद उठाया है।
2017 में राज्यसभा में रिपोर्ट पेश
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस मंजुला चेल्लूर और वरिष्ठ अधिवक्तका केके वेणुगोपाल की तीन जजों की जांच समिति ने दिसंबर 2017 में राज्यसभा में पेश अपने रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न को आरोपी हाईकोर्ट के जज को बरी कर दिया था। समिति ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर जांच की। समिति इससे वाकिफ थी कि लगाए गए आरोप समय से नहीं बल्कि देरी से लगाए गए थे। उन्होंने कहा कि महिला का तर्क कि वह यौन उत्पीड़न की वजह से दबाव में थी, यह सिद्ध नहीं हो सका।
पीड़िता बहाल किये जाने की हकदार
याचिकाकर्ता की ओर पेश हुई सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा था कि पूर्व न्यायिक महिला अधिकारी को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वह अपनी बेटी और अपने करिअर के बीच किसी एक को चुनने को मजबूर थी। उनकी (पूर्व अधिकारी की) बेटी के 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी होने तक उनके बने रहने के तर्क को खारिज कर दिया गया। उनकी दूसरी गुहार थी कि उनका कम से कम श्रेणी ए के बजाय बी शहरों में तबादला किया जाए, जहां उनकी बेटी के लिए कॉलेज हो, इसे भी खारिज कर दिया गया। दूसरा आवेदन खारिज होने के बाद मां के रूप में अपने कर्तव्यों और न्यायिक अधिकारी के बीच में से चुनाव की निराशा के बीच उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। उनका इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं था, यह मजबूरन था और इसलिए इसे खारिज किया जाए।
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