नई दिल्ली। दो दशक तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में न्यूनतम स्तर पर पंहुच गया है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इनकी कीमत घटकर प्रति बैरल 15 डॉलर तक पंहुच गई है। कोरोना के चलते विश्वव्यापी मांग घटने से क्रूडआयल (कच्चे तेल) के दाम गिरते जा रहे हैं। एक बैरल 159 लीटर के बराबर होता है।
हैरानी की बात है कि केंद्र सरकार बार-बार कहती है कि तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से तय होते हैं, लेकिन भारत में कम होती कीमतों का फायदा चंद पैसों के रूप में लोगों को मिल रहे हैं। भारत में पेट्रोल अलग-अलग राज्यों में 64 रुपये से 75 रुपये लीटर तक बिक रहा है।
मौजूदा रेट के मुताबिक एक बैरल कच्चा तेल भारतीय रुपये में करीब 1125 रुपये का पड़ रहा है। बता दें एक बैरल में 159 लीटर होते हैं और ऐसे में एक लीटर कच्चे तेल का दाम 7 रुपये 7 पैसे प्रति लीटर पड़ रहा है। फिलहाल कम कीमतों का लाभ जनता को देने की बजाय केंद्र की मोदी सरकार खजाना भरने में लगी है।
गिरावट के बाद भी क्यों सस्ते नहीं मिल रहे हैं पेट्रोल-डीजल?
अब लोगों के जेहन में एक सवाल उठ रहा है कि तेल पर इस प्राइस वॉर का भारत पर क्या असर होगा। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश है और अपनी जरूरत का 85% आयात करता है। जाहिर है तेल की कीमत में कोई भी गिरावट उसके आयात बिल को कम करेगा, पर क्या भारतीय कंज्यूमरों को इसका फायदा होगा? जवाब है- मामूली फायदा हो सकता है, लेकिन पेट्रोल, डीजल की कीमत में बड़ी कटौती की उम्मीद न करें। केंद्र और राज्य सरकारें इस मौके का इस्तेमाल एक्साइज ड्यूटी और वैट बढ़ाकर अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिए करेंगी।
कैसे 7 रुपये से 70 रुपये बनाने का होता है खेल ?
कच्चे तेल का आयात करके उसे रिफाइन करके उससे पेट्रोल, डीजल, केरोसिन और डामर में अलग करती है। कच्चे तेल की एंट्री टैक्स, रिफाइनरी प्रॉसेसिंग, लैंडिंग कॉस्ट, ऑपरेशनल कॉस्ट और मुनाफा 2.1 रुपए प्रति लीटर पड़ता है। रिफाइनिंग के बाद ऑयल मार्केटिंग कंपनियों का मुनाफा, परिवहन और भाड़ा 3.31 रुपए प्रति लीटर। यानी 5-7 रुपये और यानी अगर आज कोई रिफाइनरी 7 रुपये लीटर में तेल खरीद रहा है, तो उसे रिफाइनरी के बाद इसकी कीमत अधिकतम 14 रुपये पड़ रहा होगा।
इसके बाद इसमें शुरू होता है सरकार के टैक्स का खेल। भाड़ा व अन्य खर्चे 32 पैसे से 40 पैसे। इसमें करीब 22.98 रुपये एक्साइज ड्यूटी और सेस लगती है। डीलर का कमीशन 3.55 रुपये है। राज्य सरकारों का वैट 25 प्रतिशत तक है। जो इसमें जुड़कर आपको मिलता है। हांलाकि आज के रेट पर इन सबको भी जोड़ेंगे तो इसमें भी झोल नज़र आएगा।
तेल के खेल में सरकारों ने भर लिए अपने खजाने
पिछली बार साल 2014 से 2016 के बीच कच्चे तेल के दाम तेजी से गिर रहे थे तो सरकार इसका फायदा आम लोगों को देने के बजाय एक्साइज ड्यूटी के रूप में पेट्रोल-डीजल के जरिए ज्यादा से ज्यादा टैक्स वसूल कर अपना खजाना भरने में लगी रही। नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के बीच केंद्र सरकार ने 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाया और केवल एक बार राहत दी। ऐसा करके साल 2014-15 और 2018-19 के बीच केंद्र सरकार ने तेल पर टैक्स के जरिए 10 लाख करोड़ रुपये कमाए। वहीं राज्य सरकारें भी इस बहती गंगा में हाथ धोने से नहीं चूकीं। पेट्रोल-डीजल पर वैट ने उन्हें मालामाल कर दिया। साल 2014-15 में जहां वैट के रूप में 1.3 लाख करोड़ रुपये मिले तो वहीं 2017-18 में यह बढ़कर 1.8 लाख करोड़ हो गया.