पंकज सिंह भदौरिया,दन्तेवाड़ा. नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर करोड़ों अरबो रूपये स्वास्थ्य सेवाओं की योजनाओं के नाम पर खर्च करती है. मगर आपने शायद ही ऐसे अस्पताल देखे होंगे जो महज बोर्ड लगाकर अस्पताल की खानापूर्ति करते है. इस अस्पताल के डॉक्टर हफ्ते में एक दिन पहुँचकर अपनी सेवाओं को गरीब आदिवासियों को देने की बात कहते है, लेकिन यह कैसे मुमकिन हो सकता कि कोई भी रोजाना खुलने वाला अस्पताल मात्र 1 दिन मतलब महीने में 4 दिन खुलकर या ये समझे सालभर में महज 52 दिन खुलकर अपनी सेवाओं को दे सकते है. हमने इस अस्पताल के आस पास कई ग्रामीणों से आयुष अस्पताल के चलने के बारे में पूछा मगर ग्रामीणों को इस अस्पताल के बारे में और इलाज के बारे कुछ नहीं पता महज अस्पताल के सामने लगे बोर्ड के अलावा. पूरा मामला कटेकल्याण ब्लाक के सुरनार गांव में आयुष अस्पताल का है.
इस अस्पताल के बाहर डॉक्टरों की सूची में डॉक्टर जगदम्बा पंडा का नाम देखकर हमने उनसे पूछा कि आखिर ऐसी व्यवस्था में आप अस्पताल कैसे चलाते है. जबाब में डॉक्टर ने अपने आप को एमडी मेडिसन बताते हुए कहा कि मेरी जरूरत जिले में अधिक है इसलिए विभागीय आदेश है मुझे सुरनार केवल हफ्ते में 1 दिन आयुष अस्पताल खोलने के लिए. जबकि जानकारी के लिए आपको यह भी बता दें कि डॉक्टर पंडा की मूल संस्था सूरनार है. जहाँ से उन्हें वेतन मिलता है. इसका मतलब साफ तौर पर विभागीय लापरवाही देखिये मूल संस्था में हफ्ते में 1 दिन जाकर हफ्ते भर जिले में बैठकर पगार आराम से डॉक्टर साहब पका लेते है.
भंडारण में दवाई कबाड़ की तरह डंप दिखी
अस्पताल भ्रमण में जब लल्लूराम डॉट कॉम की टीम पहुँची तो आयुष अस्पताल जो सुरनार पीएससी में अटैच है उस पर दवाईयों का भंडारण कक्ष दिखा. जहाँ लाखों रुपये की दवाईयों का डंप पड़ी है. जिनका कोई उपयोग नहीं हो रहा है. गांव के ही हिड़मे बाज़ारपारा की दिखी जिनसे हमने गोंडी में डॉक्टर के अस्पताल खोलने और आयुष की सेवाओं के बारे में पूछा तो महिला ने कहा हमे जानकारी नहीं है. वही ओमेलपारा के आयतू इलाज के अस्पताल पहुँचे थे उन्होंने भी बताया आयुष अस्पताल नहीं खुलता है. हम लोग इधर पीएससी में इलाज करवाते है. यहाँ तक कि पीएससी में नियुक्त कर्मचारियों ने भी दबी जुबान में आयुष डॉक्टर जगदम्बा पंडा के कारनामे बताते रहे.