रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि बलरामपुर के सामरी के पास एक तीन वर्षीय मासूम बच्चे की बलि देने का मामला सामने आया है, जिसमें राजू कोरवा नामक व्यक्ति ने अपने बच्चे की बीमारी ठीक करने के लिए बैगा की सलाह पर 3 वर्षीय बालक अजय की बलि दे दी। इसके पहले, पिछले दिनों बलरामपुर जिले के एक व्यक्ति कमलेश नगेशिया ने अपने 4 वर्ष के बच्चे की बलि दे दी। उसके कुछ दिनों पूर्व नवरात्रि में भी कोरिया जिले में एक धनेश्वर नामक बालक की बलि का मामला सामने आया था, जिसके रिश्तेदारों ने ही। अंधविश्वास के कारण यह हत्याओं की घटनाएं अत्यंत दुखद हैं। ग्रामीणों को अंधविश्वास पर भरोसा नहीं करना चाहिए एवं कानून को हाथ में नहीं लेना चाहिए।


डॉ. दिनेश मिश्रा ने कहा कि अंधविश्वास में पड़कर व्यक्ति मानसिक रूप से असंतुलित हो जाता है और वह मिथकों पर पूरी तरह भरोसा करने लगता है। कहीं सुनी किस्से-कहानियां, भ्रामक खबरें, अफवाहें उसे और भी भ्रमित कर देती हैं और वह अपराध कर बैठता है।
डॉ. दिनेश मिश्रा ने कहा कि लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने की आवश्यकता है, जिससे लोग सुनी-सुनाई घटनाओं, अफवाहों और भ्रामक खबरों पर भरोसा न करें और अंधविश्वास में न पड़ें।
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कुछ मामलों में व्यक्ति किसी इष्ट देवी, देवता का सपना आने और सपने में बलि मांगने की बात भी कहते हैं और कहते हैं कि उन्होंने उनके या बैगा के आदेश पर किसी की बलि/कुर्बानी दे दी है, जबकि लोगों को यह सोचने की आवश्यकता है कि किसी निर्दोष की जान लेकर कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता, न ही किसी की बीमारी ठीक होती है, न खजाना मिलता है और न कोई स्वार्थ सिद्ध हो सकता है, बल्कि किसी दूसरे की जान लेने, बलि देने, हत्या जैसा गंभीर अपराध करने के कारण अंततः जेल जाना पड़ता है।
डॉ. दिनेश मिश्रा ने कहा कि अंधविश्वास के कारण जो व्यक्ति मानसिक उद्वेग में चला जाता है, तब वह कई बार स्वयं के अंदर किसी अदृश्य शक्ति में प्रवेश होने की बात भी करता है, तथा वह किसी के सपने में आने या किसी के आदेश देने या कानों में आवाज सुनाई पड़ने जैसी बातें भी करता है। जबकि यह एक प्रकार का मानसिक विचलन का ही कारण है। यह एक प्रकार के मानसिक संतुलन के अभाव का प्रतीक है और बहुत सारे लोग बहुत संवेदनशील होते हैं और वे भावावेश में आकर कानून हाथ में ले लेते हैं। इनमें से कुछ लोग सार्वजनिक रूप से भी असंतुलित व्यवहार प्रकट करते हैं, जैसे झूमना, बड़बड़ाना, मारना-पीटना आदि। ऐसे में किसी चिकित्सक को दिखाया जाए, उसका उपचार हो, उसकी सभी तरह से काउंसलिंग की जाए, तो व्यक्ति ठीक हो जाता है और समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें
- खेल की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें