रायपुर. छत्तीसगढ़ में नॉन पावर सेक्टर के उद्योगों के कोयले के कोटे में और कटौती कर दी गई है. राज्य इसे लेकर स्पंज आयरन उद्योगों ने राज्य सरकार से अपने हक के लिए केंद्र से बात करने को कहा है.

भारत सरकार की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड ने अपनी आठ अनुषांगी कंपनियों को 17 मार्च, 2022 को जारी एक आंतरिक परिपत्र में इस बात के निर्देश दिए हैं कि पावर सेक्टर की बढ़ती जरूरतों के अनुरूप वे 18 मार्च, 2022 से कोयले का उत्पादन, भंडारण और वितरण सुनिश्चित करें ताकि मानसून के मौसम में भी पावर सेक्टर को कोयले की निर्बाध आपूर्ति बनी रहे.

कोल इंडिया की अनुषंगी कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड को यह स्पष्ट निर्देश हैं कि वह छत्तीसगढ़ और बाहरी राज्यों के सीपीपी आधारित उद्योगों को रेलवे परिवहन के जरिए मात्र 2 रैक ही उपलब्ध कराएगी. जबकि रोड सेल से 80 हज़ार टन की जगह 37000 टन कोयला ही उद्योगों को दिया जा सकेगा. आमतौर पर एसईसीएल नॉन पावर सेक्टर को प्रतिदिन 8 से 10 रैक की आपूर्ति करती है.

माना जा रहा है कि नॉन पावर सेक्टर को कोयले की आपूर्ति में बड़ी कटौती को अनेक उद्योगों के लिए संकट पैदा कर सकती है. जबकि पहले से ही ये उद्योग 25 फीसदी कोयले कटौती को झेल रहे थे.

स्पंज आयरन संघ के अध्यक्ष नाचरानी का कहना है कि इस संकट को लेकर राज्य सरकार और केंद्र के स्टील विभाग से लगातार बात चल रही है. उनका आरोप है कि अब सीधे पीएमओ से सरकारी कंपनियों को कोयले की आपूर्ति के निर्देश मिल रहे हैं. वे कहते हैं कि पीएमओ के निर्देश पर कोयला गुजरात जा रहा है और यहां के उद्योगों को कोयला नहीं मिल पा रहा है.

नाचरानी का कहना है कि इसे ऐसे समझिए कि अब पेट भरने के लिए जहां 10 रोटी की जरुरत पड़ती थी, वहां केवल एक रोटी मिल रही है.

नचरानी ने कोल इंडिया के परिपत्र में कोल कोटे में कटौती के लिए बताए गए कारण को लेकर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि वे पावर सेक्टर के लिए आगे के 6 महीने का सोच रहे हैं और सीपीपी को 6 महीने पहले वाले कोटे का कोयला भी ठीक से नहीं मिल पा रहा है.

नान पावर जेनेरेशन में बड़ी कंपनियों का आरोप है कि वर्तमान में एसईसीएल द्वारा उत्पादित होने वाले कोयले का 95 फीसदी राज्य के बाहर भेजा रहा है. छत्तीसगढ़ के सीपीपी आधारित उद्योगों के खिलाफ यह एक बड़ा षड्यंत्र है. छत्तीसगढ़ राज्य के 250 से अधिक कैप्टिव विद्युत संयंत्रों पर आधारित उद्योगों के सुचारू संचालन के लिए प्रति वर्ष 32 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता है जो कि एसईसीएल के उत्पादन का मात्र 19 प्रतिशत है.

छत्तीसगढ़ राज्य के सीपीपी आधारित उद्योग, अनेक श्रमिक यूनियन और औद्योगिक संघ पहले ही कोल इंडिया की नीतियों को लेकर विरोध जता चुकी हैं. उनकी ओर से ये मांग की जा रही है कि राज्य के संसाधनों पर पहला अधिकार स्थानीय उद्योगों का हो. इस फैसले से छत्तीसगढ़ सरकार को राजस्व का नुकसान भी होगा

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कोल संकट का ठीकरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले केंद्र सरकार पर फोड़ा है. उन्होंने कहा कि कोयले संकट केंद्र की गलत नीतियों का नतीजा है. मोदी सरकार को 8 साल हो गए लेकिन 8 सालों में एक भी कोयला खदान शुरु नहीं करा पाए .

वहीं, जैवाश्म ईंधन के अंधाधुंध दोहन के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता और छ्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला कहते हैं कि कोयला मंत्रालय के बयान और परिपत्र में जबदस्त विरोधाभास है. दो महीने पहले लोकसभा में कोयला मंत्रालय ने बताया था कि कोयले में उत्पादन में कमी नहीं आई है. इसका उत्पादन बढ़ रहा है. केवल बारिश की वजह से कुछ समय के लिए निकासी में समस्या आई थी. फिर विभाग कटौती का बात क्यों कर रही है. ये विरोधाभाष क्यों. जबकि इस दौरान इतने सारे कोल ब्लॉकों की नीलामी की गई.