Independence Day : सुकमा. कभी नक्सलवाद की काली छाया में घिरे तुमलपाड़ और लखापाल गांव में आजादी का उत्सव पहले से कहीं अधिक रोशनी और रंगों से सजा रहा। वो दौर जब यहां की हवा में सिर्फ सन्नाटा और खौफ घुला रहता था, अब इतिहास बन चुका है। 79वें स्वतंत्रता दिवस पर दुनिया को यह संदेश दिया गया कि बंदूक और बारूद की जगह अब तिरंगा और तरक्की की बात होगी।
स्वतंत्रता दिवस Independence Day पर तुमलपाड़ में सुबह से ही उत्साह का माहौल था। महिलाएं ताजे फूलों की मालाएं बना रही थीं, बच्चे हाथों में तिरंगा लेकर दौड़ते-खेलते नजर आ रहे थे और बुजुर्ग गर्व भरी आंखों से तैयारियों को देख रहे थे। जिस चौक पर कभी माओवादी सभाएं हुआ करती थीं, वहां आज सुरक्षा बलों और ग्रामीणों ने मिलकर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। जैसे ही आसमान में तिरंगा लहराया, पूरा इलाका “भारत माता की जय” और “वंदे मातरम्” के नारों से गूंज उठा।


डर से विश्वास की ओर
तुमलपाड़ के लोग बताते हैं कि एक समय था जब स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर कार्यक्रम करना नामुमकिन था। माओवादी संगठन इन आयोजनों को देशद्रोह मानते थे और धमकी देते थे। गांवों में सरकारी योजनाओं का नाम तक नहीं लिया जा सकता था, लेकिन सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई, सड़क और पुल निर्माण, युवाओं के आगे आने से हालात बदल गए। अब यहां सीआरपीएफ कैंप, स्कूल, सड़क और स्वास्थ्य केंद्र काम कर रहे हैं।
20 वर्षों बाद खुला राम मंदिर
लखापाल में नक्सल प्रकोप के चलते राम मंदिर 20 वर्ष पूर्व बंद हो चुका था, लेकिन इलाके में 74वीं वाहिनी सीआरपीएफ कमाडेंट हिमांशु पांडेय के नेतृत्व में कैंप स्थापना के बाद इस राम मंदिर को खुलावाया गया। दो दशक बाद राम मंदिर के दरवाजे खुले, जिसके बाद फिर एक बार मंदिर में घंटे और जयकारे से लखापाल गूंज उठा।
ग्रामीणों ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि
समारोह के दौरान उन वीर जवानों को भी याद किया गया, जिन्होंने इस इलाके को माओवादी प्रभाव से मुक्त करने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। शहीद स्मारक पर ग्रामीणों और जवानों ने फूल चढ़ाए, मोमबत्तियां जलाईं और दो मिनट का मौन रखकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। जवानों ने कहा कि आजादी का यह पर्व उन्हीं की कुर्बानियों से संभव हुआ है।
नई पहचान की ओर
गांव के बुजुर्ग ने गर्व से कहा, “आज का दिन हमारे लिए सिर्फ स्वतंत्रता दिवस नहीं, बल्कि नया जीवन है। अब यहां डर नहीं, सिर्फ विकास की बात होगी। हमारी आने वाली पीढ़ियां तिरंगे के साए में बढ़ेंगी, न कि बंदूक के साए में।” तुमलपाड़ और लखापाल का यह बदलाव सिर्फ इस गांवों की कहानी नहीं, बल्कि पूरे बस्तर की नई सुबह का सबूत है। यह इस बात का प्रमाण है कि सबसे अंधेरे इलाकों में भी उम्मीद की रोशनी पहुंच सकती है, अगर लोग हिम्मत और एकजुटता दिखाएं।
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