India Cuts Russian Oil Imports: भारत ने रूसी तेल आयात पर अचानक नहीं, बल्कि योजनाबद्ध तरीके से ब्रेक लगाया है. सितंबर 2025 में जब अमेरिकी ट्रम्प प्रशासन ने रूसी तेल पर 50% टैरिफ का ऐलान किया, उसी महीने भारत के आयात आंकड़ों में काफी तेज गिरावट दर्ज की गई, वैल्यू में लगभग 29% और वॉल्यूम में करीब 17% की कमी.
सतह पर देखने पर यह अमेरिकी दबाव का असर लगता है, लेकिन सरकारी ट्रेड डेटा कुछ और कहानी बयां करता है. भारत की ऊर्जा रणनीति पिछले कई महीनों से एक अलग दिशा में बढ़ रही थी.
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भारत ने यह कटौती किसी अचानक दबाव में नहीं, बल्कि उस ‘ओवर-डिपेंडेंस’ को कम करने के लिए शुरू की थी, जिससे तेल बाजार का संतुलन बिगड़ सकता था. पिछले 10 महीनों में से 8 महीनों तक भारत लगातार रूसी तेल की वैल्यू में कटौती करता रहा. फरवरी, मई, जून, जुलाई और सितंबर, इन पांच महीनों में तो गिरावट 20% से भी ज्यादा दर्ज की गई. यह साफ संकेत था कि दिल्ली पहले से ही एक वैकल्पिक रास्ता बना रही है.
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वाणिज्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने इस बदलते ट्रेंड के पीछे की वजह बेहद सीधी भाषा में समझाई, “रूसी तेल पर निर्भरता हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए जोखिम बन रही थी. इसलिए प्लानिंग पहले ही शुरू कर दी गई थी. ट्रम्प टैरिफ जरूर आया है, पर यह पॉलिसी को निर्देशित नहीं कर रहा.”
रूस की हिस्सेदारी भी इस बदलाव को और स्पष्ट करती है. भारत के कुल तेल आयात में रूसी क्रूड का हिस्सा सितंबर 2024 में 41% था, जो सितंबर 2025 में घटकर 31% रह गया. यानी यह कोई अचानक ब्रेक नहीं, बल्कि लगातार चल रहे री-बैलेंसिंग का हिस्सा है.
खास बात यह है कि 2020-21 में रूस की हिस्सेदारी सिर्फ 1.6% थी, जो बाद के वर्षों में तेजी से बढ़ी. लेकिन 2025-26 के पहले 6 महीनों में यह ग्राफ नीचे आता दिखना शुरू हो गया और शेयर 32.3% पर सिमट गया.
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दिलचस्प यह है कि रूस से खरीद में कटौती के बावजूद भारत अब भी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है. हे़लसिंकी स्थित सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) की रिपोर्ट बताती है कि भारत ने अक्टूबर में रूस से लगभग 2.5 बिलियन डॉलर यानी करीब 22 हजार करोड़ रुपए का कच्चा तेल खरीदा. चीन अभी भी शीर्ष पर है, लगभग 3.7 बिलियन डॉलर की खरीद के साथ.
India Cuts Russian Oil Imports. CREA के अनुसार, भारत का कुल रूसी फॉसिल फ्यूल इम्पोर्ट 3.1 बिलियन डॉलर तक पहुंचा है, जबकि चीन का आंकड़ा 5.8 बिलियन डॉलर के आसपास है. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी प्रतिबंधों का वास्तविक असर दिसंबर के बाद दिखेगा, लेकिन फिलहाल भारत का रुख साफ है, डाइवर्सिफिकेशन जारी रहेगा, और निर्भरता कम की जाएगी.
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