भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर(S. Jayshankar) ने हाल ही में एक कड़ा बयान दिया है. उन्होंने उन देशों की आलोचना की है जो पाकिस्तान के साथ बिगड़ते हालातों के बीच भारत को सलाह देने का प्रयास कर रहे हैं. यह टिप्पणी उन्होंने आर्टिकल इंडिया फोरम 2025 में की, जहां उन्होंने यूरोपीय देशों को कश्मीर मुद्दे पर संयम बरतने की सलाह देने के लिए संवेदनशीलता दिखाने का आग्रह किया. पिछले कई वर्षों से ये देश भारत को इस मुद्दे पर संयम रखने की सलाह देते आ रहे हैं, लेकिन जयशंकर ने स्पष्ट किया कि ऐसे समय में यह सलाह उचित नहीं है.
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‘हमें दोस्त चाहिए, ज्ञान देने वाला नहीं’
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम 2025 में कहा कि यूरोप को भारत के साथ अपने गहरे संबंधों के लिए संवेदनशीलता और पारस्परिक हितों का प्रदर्शन करना आवश्यक है. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत को ऐसे साझेदारों की आवश्यकता है जो सहयोगी बन सकें, न कि उपदेश देने वाले, विशेषकर उन देशों से जो स्वयं उन सिद्धांतों का पालन नहीं करते जिनकी वे दूसरों को सलाह देते हैं. जयशंकर ने यूरोपीय देशों को यह समझने की आवश्यकता पर जोर दिया कि एक समझदारी और एक-दूसरे के हितों को समझने से ही संबंधों में प्रगाढ़ता आ सकती है, खासकर उन देशों के लिए जो कश्मीर मुद्दे पर भारत को झुकने की सलाह देते हैं.
‘अमेरिकी यथार्थवाद का भी हूं समर्थक’
उन्होंने ‘आर्कटिक सर्किल इंडिया फोरम’ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वे रूसी यथार्थवाद के साथ-साथ अमेरिकी यथार्थवाद के भी समर्थक हैं. उनका मानना है कि आज के अमेरिका के साथ संबंध स्थापित करने का सबसे प्रभावी तरीका आपसी हितों की पहचान करना है, बजाय इसके कि वैचारिक मतभेदों को प्राथमिकता दी जाए, जो सहयोग की संभावनाओं को बाधित कर सकता है. विदेश मंत्री ने आर्कटिक क्षेत्र में विकास के वैश्विक परिणामों और बदलती विश्व व्यवस्था पर इसके प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की.
यूरोपीय देशों पर भड़के एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूरोपीय देशों की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ यूरोपीय देश वर्तमान वास्तविकताओं के साथ खुद को समायोजित करने में लगे हैं. यदि वे भारत से सार्थक सहयोग की अपेक्षा रखते हैं, तो उन्हें अपने भीतर बदलाव लाना होगा. अमेरिका ने आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है, जबकि यूरोपीय देश वैश्विक परिवर्तनों के अनुकूल ढलने के लिए दबाव महसूस कर रहे हैं. यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि वे इस दिशा में आगे बढ़ पाते हैं या नहीं.
‘मैं रूसी और अमेरिकी यथार्थवाद का समर्थक हूं’
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारत ने हमेशा रूसी यथार्थवाद का समर्थन किया है, और दोनों देश एक-दूसरे के लिए उपभोक्ता और सामंजस्य के रूप में पूरक हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि रूस को शामिल किए बिना रूस-यूक्रेन युद्ध का समाधान खोजना संभव नहीं है, और पश्चिमी देशों की पूर्व की कोशिशों ने यथार्थवाद की बुनियादी चुनौतियों को उजागर किया है. जयशंकर ने कहा कि वे रूसी और अमेरिकी यथार्थवाद दोनों के समर्थक हैं, और अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने का सबसे प्रभावी तरीका आपसी हितों की खोज करना है, न कि वैचारिक मतभेदों को प्राथमिकता देना. उन्होंने आर्कटिक में भारत की बढ़ती भागीदारी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह 40 वर्षों से जारी है और हाल ही में आर्कटिक नीति भी बनाई गई है. रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखा है, भले ही पश्चिमी देशों की चिंताएं बढ़ी हों.
‘आर्कटिक में बढ़ रही है हमारी भागीदारी’
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि हमारी आर्कटिक के साथ भागीदारी बढ़ रही है, जबकि अंटार्कटिक के साथ हमारा सहयोग 40 वर्षों से अधिक का है. कुछ वर्ष पूर्व हमने आर्कटिक नीति तैयार की थी और स्वालबार्ड पर केएसएटी के साथ हमारे समझौते भी हैं, जो हमारे अंतरिक्ष संबंधी गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण हैं. युवा जनसंख्या के मामले में दुनिया के सबसे बड़े देश के रूप में, आर्कटिक में होने वाली घटनाएँ हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. आगे की दिशा में होने वाले परिवर्तनों के प्रभाव न केवल हमारे देश पर, बल्कि पूरी दुनिया पर भी पड़ेंगे.
भारत और रूस के बीच संबंधों पर उन्होंने कहा कि दोनों देश एक-दूसरे के लिए संसाधन प्रदाता और उपभोक्ता के रूप में महत्वपूर्ण सामंजस्य स्थापित करते हैं, जिससे उनकी साझेदारी और भी मजबूत होती है.
‘संघर्ष के वक्त मास्को के संपर्क में रहा भारत’
उन्होंने बताया कि रूस के संदर्भ में, हमारा हमेशा से यह मानना रहा है कि एक रूसी यथार्थवाद है, जिसका हम समर्थन करते हैं. रूस-यूक्रेन संघर्ष के दौरान, नई दिल्ली ने मास्को के साथ संवाद बनाए रखा और पश्चिम में बढ़ती चिंताओं के बावजूद, उसने रूसी कच्चे तेल की खरीद को बढ़ाने का निर्णय लिया.
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