भारत के कुल 13 गणतंत्र दिवस परेड में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराने वाले भारतीय सेना के सबसे उम्रदराज घोड़े ‘विराट’ को बुधवार को उसका मालिक मिल गया है। राष्ट्रपति के अंगरक्षक ने औपचारिक रूप से विराट को गोद ले लिया है। विराट को 2022 में 73वें गणतंत्र दिवस परेड के बाद रिटायर कर दिया गया था। विराट भारतीय सेना का सबसे उम्रदराज घोड़ा है, उसने अब तक गणतंत्र दिवस परेड में अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज कराई है।

परेड के दौरान उसकी शालीनता, अनुशासन और अद्भुत प्रशिक्षण के कारण वह हमेशा से ही दर्शकों का ध्यान खींचता था। उसे सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेंडेशन कार्ड से भी सम्मानित किया गया है। यह घोड़ा अभी भी युवा घोड़ों से प्रतियोगिता करता है।

राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड ने लिया गोद

बुधवार को राष्ट्रपति के अंगरक्षक ने उसे औपचारिक रूप से गोद ले लिया। उन्होंने बताया कि सेना के घोड़े आम घोड़ों से काफी अलग होते हैं वे ज्यादा ऊंचे और 150-200 किलो तक भारी होते हैं। ‘विराट’ की रिटायरमेंट और अब उनकी गोद लिए जाने की यह प्रक्रिया भारतीय सेना की पशु सेवा परंपरा और उन जानवरों के प्रति सम्मान को दर्शाती है, जिन्होंने वर्षों तक राष्ट्र की औपचारिक परंपराओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

19 वर्षों तक दी सेवा

विराट ने लगभग सेना में 19 वर्षों तक सेवा दी है। अपने रिटायरमेंट वाले दिन यानि 2022 में 73वें गणतंत्र दिवस परेड के दौरान विराट ने राष्ट्रपति को अपना अंतिम अनुरक्षण प्रस्तुत किया था। 2022 की 15 जनवरी की रोज असाधारण सेवा और क्षमताओं के लिए विराट को थल सेनाध्यक्ष प्रशस्ति पदक दिया गया, इसे प्राप्त करने वाला वह पहला घोड़ा था। इस मौके पर राष्ट्रपति कोविंद, पीएम मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोड़े को विदाई दी।

2003 में अंगरक्षक परिवार में हुआ था शामिल

परेड के दौरान विराट को सबसे भरोसेमंद घोड़ा माना जाता है। हनोवेरियन नस्ल के इस घोड़े को 2003 में अंगरक्षक परिवार में शामिल किया गया था। यह घोड़ा अपने नाम के मुताबिक बहुत ही सीनियर, अनुशासित और आकर्षक कदकाठी का है। यह घोड़ा 2003 में हेमपुर के रिमाउंट ट्रेनिंग स्कूल एंड डिपो से तीन साल की उम्र में यहां लाया गया था।

हजारों में चुना गया था विराट

राष्ट्रपति के अंगरक्षक भारतीय सेना में सबसे विशिष्ट रेजिमेंट हैं, जिन्हें हजारों की संख्या में विरासत के आधार पर चुना जाता है। 200 मजबूत घुड़सवार इकाई सदियों से ब्रिटिश वायसराय से लेकर अब राष्ट्रपति को सौंपी जाती है।

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